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________________ 15-16. Casting of Ascendant & Chalit Horoscopes पाठ- 15-16. लग्न एवं चलित कुण्डली बनाना जन्मपत्री की चित्रित करने के लिए कई तारीके हैं लेकिन उत्तर भारतीय चित्रित तारीका सबसे अधिक प्रचिलत है इस तारीख में एक वर्ग या आयताकार के आमने-सामने के कोनों को एक सीधी रेखा से मिलाया जाता है फिर इस आयताकार की चारो भुजाओं के मध्य विन्दु को आपस में इस प्रकार मिलाते हैं कि वह वर्ग बना लें जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। 2 / 12 3X AV 10 / 6 इस प्रकार इस चित्र में 12 खाने बने इन बारह कोष्टकों की बारह भाव कहा जाता है और ऊपर भाव प्रथम भाव कहलाता है और विपरीत घड़ी की चाल से प्रथम, द्वितीय, तृतीय ......द्वादश भाव होते हैं। प्रथम भाव को लग्न कहते हैं जो लग्न स्पष्ट किया जाता है उस राशि की संख्या प्रथम भाव में लगाकर शेष भावों में विपरीत घड़ी चाल से सभी राशियों को रखा जाता है उपरान्त सभी ग्रहों की कुण्डली में ग्रह स्पष्ट की गई राशियों पर लगाकर कुण्डली तैयार हो जाती है। उदाहरण- कुण्डली से किये गये गणित में लग्न 4रा 24° 34'04" स्पष्ट हुआ अर्थात 4 राशि पूरी हो चुकी थी और पंचमी राशि चल रही थी पांचवी राशि राशि चक्र की सिंह राशि होती है इसलिए लग्न सिंह हुआ और क्रमशः राशियों की संख्या कुण्डली भावों में आ जायेंगी और ग्रहों के ग्रह स्पष्ट की राशि में लगा देंगे। लग्न स्पष्ट और ग्रह स्पष्ट सारणी से जन्म कुण्डली इस प्रकार बनेगी। 65
SR No.009373
Book TitleSaral Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunkumar Bansal
PublisherAkhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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