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9-10. The Calculations for Astrology
पाठ - 9-10. गणित
हम यह जानते हैं कि सूर्य से ही समय, दिन एवं रात तथा ऋतुओं का निर्माण हुआ पौराणिक हिन्दु दिन सूर्योदय से पुनः सूर्योदय तक मानते हैं। जब सूर्य सिर पर होता है तो स्थानीय दो पहर होती है। पृथ्वी एक समतल तत्व नहीं है। अपितु नारंगी की तरह गोल है। और अपनी धूरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है। इससे सिद्ध होता है। कि पूर्व के देशों में सूर्य पहले दिखाई देगा। पश्चिम के देशों में बाद में दिखाई देगा, इस प्रकार सब स्थानों पर सूर्योदय का समय अलग-अलग होगा।
स्थानीय समय ऊपर हम देख चुके हैं कि पूर्व के देशों में सूर्य पहले दिखाई देगा तथा पश्चिम के देशों में बाद में दिखाई देगा। इसलिए प्रत्येक स्थान का स्थानीय समय भिन्न होता है। परन्तु समय के व्यतीत होने की दर में समानता लाने के लिए तथा जटिल गणितीय संगणना से बचने के लिये "स्थानीय औसत समय"(L.M.T.) (Local Mean Time) का मान लिया जाता है। यह समय किसी भी स्थान के अक्षांश और देशान्तर पर निर्भर करता है। ज्योतिष में हम सबसे पहले, दिए हुए समय को स्थानीय औसत समय में बदलते हैं।
मानक समय
किसी स्थान से देश बड़ा होता है। परन्तु आने-जाने की सुविधाओं के विस्तार के कारण तथा संचार साधनों के विकास के कारण देश एक ईकाई हो गया है। डाक, तार टेलीफोन आदि संचार साधनों से देश जुड़ गया है। यातायात के साधनों के विकास के कारण प्रत्येक शहर दूसरे से जुड़ गया है। इसलिए देश के समय की आवश्यकता का अनुभव किया गया जिसमें प्रत्येक शहर का समय एक हो। सन् 1906 ई. में यह निर्णय लिया गया कि 82°-30' पूर्व देशान्तर को भारत का मानक मध्याहन रेखा के रूप में लिया जाएगा। यह भारत का मानक समय है। हवाई जहाज, डाक, रेल आदि सभी इस समय का ही प्रयोग करते हैं। आज तो हमारी घड़िया भी इसी समय के अनुसार चलती
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