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अंशों वाला पितृकारक, उससे कम अंशों वाला पुत्रकारक, उससे कम अंशों वाला जातिकारक तथा उससे कम अंशों वाला स्त्रीकारक कहा गया है। ग्रहों के लोक
पूर्व में जातक किस लोक में था और मृत्यु के पश्चात् कहां जायेगा आदि विचार के लिए ग्रहों के लोक का उपयोग होता है। स्वर्ग का अधिपति गुरु, पितृलोक के शुक्र और चन्द्रमा, पाताललोक का बुध, मृत्युलोक के मंगल और सूर्य तथा नरक का अधिपति शनि है।
ग्रह मैत्री ग्रहों के बलाबल का निर्णय करने के लिए पंचधा मैत्री चक्र बनाया जाता है। पंचधा मैत्री का आधार है निसर्ग मैत्री एवं तात्कालिक मैत्री। तात्कालिक मैत्री जन्मकुण्डली के आधार पर तै की जाती है। ग्रहों की पांच प्रकार की स्थिति को बतलाने वाला चक्र पंचधा मैत्री चक्र कहलाता है। अतिमित्र-मित्र-सम-शत्रु एवं अतिशत्रु। नीचे मैत्री चक्र दिया जा रहा है।
निसर्ग मैत्री चक्र नाम ग्रह मित्र
सम शत्रु चं., म., बृ.
शु., श., रा.
सूर्य
चन्द्र
म., बृ.. शु.. श.
रा.
मंगल
बुध
सू., चं., मं
श., रा.
बु., शु.
बृहस्पति शुक्र शनि
बु., शु., रा. बु., शु., श.
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सू., चं., मं. सू., चं., म.
राहु
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