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अपितु दोनों कुण्डलियां एक दूसरे की पूरक हो जाती है। दोनों कुण्डलियों के गुण दोष एक दूसरे को काटते हुए गृहस्थ जीवन में सुख व समृद्धि बढ़ाते हैं। इसलिए कुण्डली मिलान के बिना भी गृहस्थ सुखी रह सकता है। परन्तु जिनकी कुण्डली में दोष रहता है, यदि वे कुण्डली मिलान के बिना विवाह करते हैं तो तलाक, असमय मृत्यु, कलह, बच्चे तथा बुढ़े दुःखी रहते हैं। गृहस्थ नष्ट हो जाता है तो समाज नष्ट हो जाता है।
मेलापक का आधार ज्योतिष शास्त्र में लग्न तथा चन्द्र लग्न की प्रधानता है। लग्न शरीर है जिसको सब सुख मिलता है। सारे कार्य कलापों का आधार है। इसलिए शरीर स्वस्थ रहना चाहिये। अर्थात लग्न बलवान होना चाहिये। चन्द्र लग्न मन है। मन ही शरीर तथा कर्मेन्द्रियों एवं ज्ञानेन्द्रियों को वश में रखता है। प्रेम मन का आधार है यदि मन प्रसन्न हो तो प्रत्येक कार्य सुन्दर व सुखदायक प्रतीत होता है। इसलिए हमारे मनीषियों ने मेलापक का आधार जन्म राशि को बनाया है।
जन्म राशि अर्थात जन्म समय पर चन्द्रमा जिस राशि में स्थित होता है, को आधार बनाकर वर-वधु के गुण दोष निकाले।
गणना में नाम की प्रधानता
भारतीय ज्योतिष के अनुसार विवाह, यात्रा, उपनयन, चड़ाकरण, गोचर विचार आदि केवल जन्म राशि से ही देखने चाहिये। देश सम्बन्धी, शुभाशुभ, गृहनिर्माण, ज्वरविचार, व्यवहार, द्युत, दान, मन्त्रग्रहण, सेवा कर्म, काकिणी का विचार तथा स्त्री के द्वितीय विवाह में प्रसिद्ध नाम वश विचार किया जाता है। परन्तु जिनकी कुण्डली नहीं है उनका मेलाप प्रसिद्ध नाम से किया जाता है। यदि प्रसिद्ध नाम कई हो तो अन्तिम नाम से भी मेलापक देखा जाता है। यदि किसी का जन्म नक्षत्र व प्रसिद्ध नाम दोनों हो तथा अन्य का केवल प्रसिद्ध नाम हो तो मेलापक केवल दोनों के प्रसिद्ध नाम से ही देखना चाहिये। यह कदापि नहीं होना चाहिये कि एक का जन्म नाम तथा दूसरे का प्रसिद्ध नाम। दोनों का केवल एक ही नाम होना चाहिये- जन्मनाम या प्रसिद्ध नाम। जन्मनाम तथा प्रसिद्ध नाम दोनों को मिलाकर मेलापक नहीं देखना चाहिये।
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