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________________ में कुछ बुरा फल देती है परन्तु आक्रमण बड़े वेग से होता है। दूसरे पर्याय में वेग तो कम हो जाता है परन्तु फिर भी कष्ट तो मिलता ही है, परन्तु इतना हानि कारक नहीं होता तथा कुछ शुभ फल भी प्राप्त होता है। परन्तु तीसरे पर्याय में जातक की मृत्यु हो जाती है। बहुत कम भाग्यवान जातक ही इस तीसरे पर्याय को झेल पाते हैं। साढ़े साती में साधारणतया हम यह देखते हैं कि शनि किस राशि से गोचर कर रहा है। उस राशि के स्वामी से उसका कैसा सम्बन्ध है। यदि उसका सम्बन्ध मित्रता का है तो अशुभ फल नहीं होता। वैसे तो यह सम्बन्ध पंचधा मैत्री से देखना चाहिये। परन्तु पंचधा मैत्री तो कुण्डली के अनुसार बनेगी। समझाने के लिये हम लिखते है मित्र की राशि से गोचर कर रहा है। माना कि शनि गोचर कर रहा है। मेष राशि से प्रथम 2.5 मीन, जिसका स्वामी बृहस्पति है तथा शनि के गुरु के साथ सम नैसर्गिक सम्बन्ध है तो प्रथम 2. 5 सम द्वितीय 2.5 मेष, जिसमें चन्द्रमा स्थित है उसका स्वामी मंगल है जो शनि का शत्रु है। अर्थात द्वितीय ढैया अशुभ तीसरी दैया में शनि वृष राशि में गोचर करेगा। वृष के स्वामी शुक्र को शनि मित्र समझता है, इसलिये तीसरे द्वैया शुभ अर्थात् मेष राशि वालों के लिये केवल दूसरे दैया अशुभ हुई। इस प्रकार इसको इस तालिका में लिख सकते है। चन्द्रमा प्रथम द्वितीय तृतीय ढैया मेष सम अशुभ अशुभ शुभ मिथुन शुभ अशुभ अशुभ अशुभ सिंह अशुभ अशुभ कन्या अशुभ शुभ तुला शुभ शुभ अशुभ वृश्चिक अशुभ सम अशुभ शुभ मकर सम शुभ शुभ कुम्भ मीन शुभ अशुभ शुभ वृषम शुभ शुभ कर्क शुभ शुभ शुभ शुभ धनु सम शुभ सम सम 139
SR No.009373
Book TitleSaral Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunkumar Bansal
PublisherAkhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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