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इस योग में उत्पन्न जातक सुन्दर आंखों वाला, मेधावी, शक्तिशाली, बच्चों, पत्नी, सवारी, सेवको वाला होता है। धर्म ग्रन्थों का ज्ञाता होता है। परामर्श देने में सक्षम, उदार तथा दीर्घायु वाला होता है। सस योग यदि शनि स्वराशि (मकर या कुम्भ) या उच्चराशि तुला में लग्न से केन्द्र में स्थित हो तथा लग्न बलवान हो तो सस योग होता है। जातक परामर्श देने वाल, गांव का प्रधान, कठोर हृदय वाला, दूसरों की सम्पति का प्रयोग करने वाला, स्त्रियों की संगति में रहने वाला, धनी सुखी तथा सम्मानित व्यक्ति होता है। विपरीत राजयोग जब 6,8,12 भाव के स्वामी 6,8 या 12 भाव में स्थित हो तो विपरीत राजयोग बनता है। इसके तीन प्रकार है। (क) हर्ष जब षष्ठेश 8 या 12 भाव में स्थित हो (ख) सरल जब अष्टमेश 6 या 12 भाव में स्थित हो (ग) विमल जब द्वादशेश 6 या 8 भाव में स्थित हो 6, 8 तथा 12 भाव त्रिभाव कहलाते हैं। इनके स्वामी जहां स्थित होते हैं उस भाव को नष्ट कर देते हैं। आओ षषेश लें। षष्ठेश अशुभ भाव का स्वामी है जहां स्थित होगा उस भाव के कारकत्व को नष्ट कर देगा। मानो षष्ठेश द्वादश भाव में स्थित है। तो वह द्वादश भाव को कारकत्व को नष्ट कर देगा। परन्तु द्वादश भाव तो स्वयं अशुभ भाव है। इस प्रकार षष्ठेश द्वादश भाव के अशुभ भत्व को नष्ट कर देगा जो जातक के लिए शुभ होगा। इसलिये इस योग को विपरीत राजयोग कहेंगे। इसी प्रकार अन्य भावों के बारे में जानिए।
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