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________________ चन्द्र पर्वत- मंगल पर्वत के नीचे और शुक्र पर्वत के विपरीत दिशा में चंद्र पर्वत होता है। यह कल्पना, आदर्श, कला साहित्य के प्रति लगाव आदि को प्रदर्शित करता है। मंगल पर्वत- यह युद्ध में सौर्य की भावना, सक्रियता, साहस, भावना आदि प्रदान करता है। यदि यह क्षेत्र ज्यादा उन्नत युक्त होगा तो व्यक्ति में लड़ाई, झगड़े की भावना उत्पन्न करता है यह शुक्र पर्वत के बगल में होता है। दूसरा चन्द्र और बुध के मध्य पाया जाता है जो कि निश्चित साहस, आत्मनियन्त्रण, निराशा और गलती के विराधे की क्षमता का सूचक है। सूर्य पर्वत- यह क्षेत्र अनामिका के आधार में स्थित होता है, यदि यह क्षेत्र विकसित होगा तो व्यक्ति को कला के प्रति सफलता प्रदान करता है। साहित्य, कविता, संगीत तथा आदर्श एवं उच्च विचारों के प्रति रुचि एवं सफलता प्राप्त होती है। गुरु पर्वत- तर्जनी के मूल में जो उभार दिखायी देता है वह गुरुपर्वत है। गुरु पर्वत उन्नत होने पर व्यक्ति में महत्वाकांक्षा और गर्व की भावना अधिक होती है। उत्साह एवं शान्ती की कामना का यह सूचक है, यदि व्यक्ति के हाथ में अविकसित होगा तो धार्मिक भावना में कमी बड़ों के प्रति अश्रद्धा तथा अधिक विकसित होने पर व्यक्ति में अहंकार उत्पन्न होता है। शुक्र पर्वत- यह क्षेत्र अंगूठे के मूल स्थान के नीचे स्थित होता है। यह असामान्य ठंग से विकसित होने पर व्यक्ति की इच्छा, कला, भावनात्मक सम्बन्ध, सौन्दर्य पुजारी के रुप में जाना जाता है। यह पर्वत हाथ में सबसे महत्त्वपूर्ण रक्त कोश बनाता है जो हथेली का बड़ा विकास है। यदि शुक्र पर्वत सुविकसित होगा तो स्वास्थ्य उत्तम रहता है यही क्षेत्र छोटा अथवा सामान्य से कम होने पर या अविकसित होने पर स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है तथा काम शक्ति की भी कमी होती है। यदि यह क्षेत्र अधिक विकसित या उभरा होगा तो वह स्त्री/पुरुष-विपरीत लिंग के प्रति कामोन्माद प्रकट करता है तथा सौंदर्य के प्रति रुचि होती है ऐसे जातक के चरित्र को भी संदेह की नजर से देखा जाता है।
SR No.009372
Book TitleSaral Hastrekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshwardas Mishr, Arunkumar Bansal
PublisherAkhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh
Publication Year2001
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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