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प्रारम्भिक हाथ
प्रारम्भिक हाथ के स्वामी प्रायः या तो सीमित बुद्धि के स्वामी होते हैं या फिर कम बुद्धि होती है, ऐसे लोगों का निम्न या साधारण व्यक्तित्व होता हैं। इस प्रकार के हाथ वाले कुछ लोग अपराधी, और बुद्धिहीन होते हैं। इनकी मानसिक क्षमता न के बराबर होती है। क्योंकि जो थोड़ी बहुत बुद्धि इनमें होती भी है, उसका ये उपयोग नहीं करपाते तथा परिश्रम करने में भी ये लोग पीछे होते हैं। ऐसे लोगों का हाथ देखने पर सरलता से ज्ञात जाता है कि तर्क और विचार नाम की वस्तु इनके पास नहीं होती। सिर्फ पीना, खाना, और वासना इनके जीवन का मुख्य उद्देश्य होता हैं। इस प्रकार की हथेली पहले वर्ण की अधिक पायी जाती हैं। अंगुलियाँ छोटी और कड़ी होती हैं। इनमें आवेग अधिक पाया जाता है तथा उसका नियन्त्रण करना इनके लिए बहुत कठिन होता है। ये लोग इस तर्क को मानते हैं कि-यावज्जिवेत् सुखं जिवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत् । यही इनका आदर्श वाक्य होता है। रंग, रुप, और संगीत पर ये ज्यादा गौर फरमाते हैं स्वास्थ्य और अध्ययन को बेकार समझते हैं। किसान, मजदूर, कारीगर, श्रमिक फेरी वाला, नाविक, कसायी, आदि श्रेणी के लोगों का हाथ इसी प्रकार का होता है। ऐसे हाथों के अंगुलियों का नाखून छोटे होते हैं। अगर ऐसा हाथ अध्ययन किया जाय, तो प्रायः अंगुलियों की लम्बाई लगभग हथेलियों के बराबर होती है। अगर हथेली की अपेक्षा अंगुलियों की लम्बाई अधिक होगी, तो वौद्धिक क्षमता अधिक होगी। कभी-2 कुछ हाथ अविकसित होते हैं, जिनमें रेखाओं का अभाव होता है। अगर ऐसी स्थिति में गहन अध्ययन किया जाय तो हिंसक प्रवृत्ति उत्पन्न करने वाला हाथ कहा जा सकता है। इनमें इच्छाओं और कार्यों पर कोई नियन्त्रण नहीं होता। रुप रंग सौंदर्य आदि के प्रति भी ज्यादा रुचि नहीं होती तथा कुछ लोगों में धूर्तता भी पायी जाती है।