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चिकित्सा विज्ञान से कान का रक्त अर्बुद काफी समय पहले जाना जा चुका है, यह कान के ऊपरी भाग में विभिन्न आकार में बनता है, यह फिर उपरी भाग के फूल जाने से उसी की शक्ल में बन जाता है। जिसमें रक्त अर्बुद होता है, यह अर्बुद अक्सर पागलों के कान में ही बनता है सामान्य रुप से उन लोगों के कान में जिनका पागलपन पैतृक होता है। इस बात का विशेष अध्ययन पेरिस में किया गया। विज्ञान अकादमी के तमाम परीक्षणों के जो परिणाम निकले उनसे सिद्ध हो गया कि केवल कान की परख करके वर्षों पहले भविष्यवाणी की जा सकती है। इसलिए यह तर्क सिद्ध हो चुका है कि जब केवल कान की जांच-परख करके सही-सही भविष्यवाणी की जा सकती है, तो क्या हाथों का निरीक्षण करके अन्य भविष्यवाणी करना असम्भव है? हाथ के विषय में स्नायु मण्डल और उनके गति संचालन को देखते हुए यह माना जा चुका है कि हाथ ही पूरे मानव शरीर का सर्वाधिक विचित्र अंग है, और हाथ का मस्तिष्क के साथ सबसे ज्यादा गहरा सम्बन्ध है। किन्हीं दो हाथों पर अंकित रेखाएं और चिह्न कभी भी एक जैसे नहीं पाये जाते। इसके अलावा जुड़वा बच्चों की हस्तरेखा में भी परस्पर अन्तर पाया जाता है। यह भी पाया गया है कि हाथ की रेखाएँ किसी परिवार की किसी विशिष्ट प्रवृत्ति को स्पष्ट कर देती है और आने वाली पीढ़ियों में यह प्रवृत्ति निरन्तर बनी रहती है, लेकिन यह भी देखा गया है कि कुछ बच्चों के हाथ पर अंकित रेखाओं की स्थिति में अपने माता-पिता से कोई समानता नहीं होती। अगर गहराई से अध्ययन किया जाय, तो इस सिद्धान्त के अनुसार वे बच्चे अपने माता-पिता से पूरी तरह भिन्न होते हैं। एक प्रचलित धारणा है कि हाथ की रेखाओं पर व्यक्ति के कार्यों का गहरा प्रभाव पड़ता है। वे उनके अनुसार ही चलती रहती हैं। लेकिन सच्चाई इसके विल्कुल विपरीत है, शिशु के जन्म के समय ही उसके हाथ की चमड़ी मोटी और कुछ सख्त हो जाती है, अगर व्यक्ति के हथेली की चमड़ी को पुल्टिस या किसी अन्य साधनों से मुलायम बना दिया जाये तो उसपर अंकित चिह्न किसी भी समय देखे जा सकते हैं। इनमें अधिकांश चिह्न उसकी हथेली पर जीवन के अंतिम क्षण तक बने रहते हैं।