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________________ मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर कूर्मवाहन, दृष्टि प्रिय, सब आभरणों से भूषित, स्तम्भन और मोहनकारक, इन्द्र आदि देवता रूप। स मंत्र अधिकार ह पुल्लिंग, श्वेतवर्ण, वज्र-चक्र- शंख और गदा लिए हुए चार भुजाएँ, एक पक्ष योजन प्रमाण, मधुर स्वर, हीरे-मोती और वैडूर्य के आभूषण, सुगंधित माला, और अनुप से युक्त, श्वेत वस्त्र प्रिय, सब कर्मों के कर्ता, सब मंत्रों से पूजित, महा मुकुटधारी, वश्य और आकर्षण के कर्ता, प्रसन्न दृष्टि, हंस वाहन, कुबेर देवता रूप सकार की शक्ति है। नपुंसक, सर्वव्यापी, श्वेतवर्ण, श्वेतगंध प्रिय, श्वेतमाला और अनुलेप से युक्त श्वेत वस्त्रप्रिय, सब कर्मों के कर्ता, सब मंत्रों में प्रधान, नव देवताओं से पूजित, महान कांति वाले, अनेक मुद्राओं शस्त्र और युक्तियों से युक्त, अचिंत्य गति वाले, चलायमान को भी विजय करने वाले चिंतित मनोरथ सब देवताओं का आकर्षण करने वाले, भूत भविष्य वर्तमान ऐसे तीन लोक और तीन काल को देखने वाले सब लक्ष्मी आदि देवता रूप हकार की शक्ति है। क्ष - पुल्लिंग, पीतवर्ण, जम्बूद्वीप के समान ध्यान करने योग्य, असंख्यात द्वीप और समुद्रों में व्यापी, एक मुख, वायु के समान गंभीर, वज्र -पाश- मूशल - भुसुण्डि - गदा-शंख और चक्र लिए आठ भुजाएँ, गज वाहन, चौखूटां आसन, सब आभरणों सेभूषित, जटा और मुकुट के धारक, सब लोगों से पूजित, स्तम्भन रूप सुगंधित मालाओं को पसन्द करने वाले, सबकी रक्षा करने वाले, सर्वप्रिय, सर्वकाल के ज्ञान वाले, माहेश्वर, सब यंत्रों को पसन्द करने वाले, रुद्र और अग्निदेवताओं से पूजित क्षकार की शक्ति है । मंत्रों के जप में गूंथने के भेद मंत्रों को जपने के निम्नलिखित तेरह प्रकार हैं जिनको विन्यास कहते हैं- ग्रथित, सम्पुट ग्रस्त, समस्तयायोग, विदर्भित, आक्रान्त, आद्यान्त, अगर्भित या गर्भस्थ, सर्वतो मुख, विदर्भ, विदर्भ ग्रसित, रोधन और पल्लव। ग्रथित- साध्य के नाम के एक अक्षर के साथ मंत्र के एक एक अक्षर को एक बार प्रयोग करने को ग्रथित कहते हैं । यह वश्य और आकर्षक कर्मों में फलदायक होता है। सम्पुट - जिसमें आदि में मंत्र, फिर साध्य का नाम और अन्त में फिर मंत्र बोला जाये उसे सम्पुट कहते हैं। यह शांति और पुष्टि करने वाला तथा तीन लोक के ऐश्वर्य को देने वाला है। ग्रस्त - जिसमें आदि और अन्त में आधा-आधा मंत्र और बीच में साध्य का नाम हो उसे ग्रस्त कहते हैं। इसको मारणादि सभी अशुभ कर्मों में प्रयोग किया जाता है। 81
SR No.009370
Book TitleMantra Yantra aur Tantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, L000, & L020
File Size1 MB
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