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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
आह्वानन, स्थापना, सन्निधिकरण, अष्टद्रव्य से पूजन और विसर्जन। १. आह्वानन- मंत्राधिदेवता के बुलाने को आह्वानन कहते हैं।
स्थापन- उन देवता या प्रतिबिंब के उचित स्थान में स्थापन करने को स्थापना कहते हैं। ३. सन्निधिकरण- देवता का पूजन करते समय साक्षात्कार करने को सन्निधिकरण
कहते हैं। पूजन- देवता का अभिषेक पूर्वक अष्ट द्रव्यों से अर्चन गुणानुवाद करने को पूजन कहते हैं। विसर्जन- उनको आदर सत्कारपूर्वक अपने स्थान पर भेजने को विसर्जन कहते हैं। विशेष :- पूजन विधि देंखे यंत्र अधिकार में, पेज नं. (264) जैसे वहां पर यंत्रों
की पूजन की गयी है उसी प्रकार मंत्र देवताओं की पूजन करें। 37. दीपक में घी व तेल का प्रयोजन- गाय के दूध के घी का दीपक सर्व सिद्धि कारक,
भैंस के घी का मारण में, ऊंटनी के घी का विद्वेषण में, भेड़ के घी का शांतिकर्म में, बकरी के घी का उच्चाटन में, तिल के तेल का सर्वसिद्धि में, सरसों तेल मारण में
प्रयोग किया जाता है। 38. बत्ती का महत्व- वशीकरण में श्वेत बत्तियों का, विद्वेषण में पीत, मारण में हरी,
उच्चाटन में केसरिया, स्तम्भन में काली, शान्ति के लिए सफेद रंग की बत्तियों का
प्रयोग किया जाता है। 39. दिशा विचार- पूर्व दिशा में दीपक का मुख रखने से सर्व सुख की प्राप्ति, स्तम्भन,
उच्चाटन, रक्षण तथा विद्वेषण में पश्चिम दिशा की ओर, लक्ष्मी प्राप्ति के लिए
उत्तराभिमुख तथा मारण में दक्षिणाभिमुख दीपक रखना चाहिए। 40. कलश में वस्तुएं रखने का महत्व- सामान्यतः कलश को जल से भरते हैं। किन्तु
विशेष प्रयोजन में विशेष वस्तुएं रखे जाने का विधान मिलता है। जैसे- धन लाभ हेतु मोती व कमल का प्रयोग करते हैं, विजय के लिए अपराजिता, वशीकरण के लिए मोर पंखी, उच्चाटन के लिए व्याघ्री, मारणा के लिए काली मिर्च, आकर्षण के लिए धतूरा, भरने का विधान है।
माला का महत्व रुद्राक्ष माला पहनने से ब्लडप्रेशर नहीं होता, पपीते के बीज की माला पहनने से प्लेग नहीं होता, कमल बीज की माला पहनने से रोग नहीं होता, मूंगे की माला पहनने से रक्त वृद्धि व शुद्धि होती है। ध्यान दें- सोते समय माला धारण न करें प्रातः स्नान के बाद ही धारण करें। जपते समय सुमेरु का उल्लंघन न करें। अर्थात् माला पूरी होते ही लांघे नहीं
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