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________________ मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर स्वतः ही अनुकूल होंगी। वैसे मंत्र कोई व्यक्ति के लिए वस्तु अनुकूल प्रतिकूल नहीं करते और न ही किसी समस्या का समाधान करते हैं। हाँ यह बात अवश्य है कि यदि इन्हें आस्था पूर्वक जपा जाय तो आपके मन मस्तिष्क व शरीर में विशेष प्रकार की ऊर्जा का संचार होता है, जिसके कारण आभामण्डल अधिक विकसित होकर यथायोग्य व्यक्ति द्वारा या अन्य कारणवश आपको नई दिशा या सोच का मार्ग प्रशस्त होकर समस्या के समाधान में सहायक सिद्ध होता है। जो दिल दिमाग व शरीर को भी स्वस्थ करता है। आस्था और विश्वास जितना प्रगाढ़ होता है उतनी ही अधिक शीघ्र सफलता मिलती है और फिर उपाय तो मात्र आस्था और विश्वास का ही विषय है तर्क का नहीं। मेरी दृष्टि से विश्वास का उदय भी वहीं से शुरु होता है जहाँ तर्क, विचार, बुद्धि, शब्द सब गौण हो जाते हैं। केवल आस्था व चेतना जागृत होती है तभी कल्याणकारी (चमत्कारी) लाभ मिलता है। __ वैसे जीवन में चमत्कार नाम की कोई चीज नहीं होती, हाँ प्रकृति प्रदत्त प्रत्येक वस्तु स्वयं चमत्कार है। अतः सत्य केवल वह नहीं है जो प्रत्यक्षतः दिखता है; बल्कि सत्य वह भी है जो दिखता भी नहीं है किन्तु अनुभूत होता है। आज की कल्पना कल सत्य हो सकती है, मात्र श्रद्धा होना चाहिए। इस शास्त्र में दिये गए सभी उपाय शास्त्रीय पुस्तकों, शास्त्रों, पारम्परिक स्तर पर गाँवों में प्रयुक्त किए जाने वाली प्रक्रियाओं, वैद्यों एवं बुजुर्गों आदि से प्राप्त किए गए हैं और प्रमाणिक हैं, परन्तु सभी हमारे गुरुदेव द्वारा परीक्षित नहीं है। हाँ कुछ क्रियाओं का प्रयोग हमारे गुरुदेव द्वारा किया गया जिससे लोग लाभान्वित अवश्य हुए हैं। अतः हमें विश्वास है कि शेष उपाय भी प्रामाणिक सिद्ध ही होंगे। यदि इस पुस्तक में आपको कोई कमी महसूस हो तो मुझे अवगत करना जिससे भविष्य में गलती की पुनरावृत्ति न हो सके। आपके शब्द हमारे लिए प्रेरणादायक होंगे जो हमारी श्रद्धा को प्रगाढ़ता देंगे। ___ अंत में इस ग्रन्थ के प्रकाशन में द्रव्य सहयोगी सभी समाज का आभार व्यक्त करती हुई, परमात्मा से प्रार्थना करती हूँ कि ज्ञानदान प्रदाताओं के लिए एक दिन केवलज्ञान की प्राप्ति हो, जिससे वह संसार सागर से पार होकर शाश्वत सुख को प्राप्त कर सकें। अन्त में मम गुरुदेव मुनि श्री प्रार्थना सागर जी महाराज के श्री चरणों में श्रद्धा-भक्ति पूर्वक कोटि कोटि वंदन। -श्रीमती निर्मला पाटनी प्रधान संपादिका- प्रार्थना टाइम्स, मासिक Email:-prarthnatimes1@gmail.com = 38
SR No.009370
Book TitleMantra Yantra aur Tantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, L000, & L020
File Size1 MB
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