SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर व्यन्तर साधक की साधना से भयत्रस्त हो जायें, कांपने लगें अर्थात् मनुष्य, पशु, पक्षी प्रयोग करने वाले की सूचना (आज्ञा ) के अनुसार कार्य करें, उन ध्वनियों के सन्निवेश को जृम्भण मंत्र कहते हैं। अथवा आत्म साधना के अनुसार इन्द्रिय और मन अपना कार्य करें उसे जृंभण मंत्र कहते हैं । ९. विद्वेषण मंत्र - जिन ध्वनियों के वैज्ञानिक सन्निवेश के घर्षण द्वारा दो मित्रों के बीच में फूट पड़े, सम्बन्ध टूट जाए अथवा कुटुम्ब, जाति, देश, समाज, राष्ट्र आदि में परस्पर कलह और वैमनस्य की क्रान्ति मच जाये, उन ध्वनियों के सन्निवेश को विद्वेषण मंत्र कहते हैं। १०. मारण मंत्र - जिन ध्वनियों के वैज्ञानिक सन्निवेश घर्षण द्वारा जीवों की मृत्यु हो जाये, या साधक आततायियों को प्राणदण्ड दे सके, उन ध्वनियों के सन्निवेश को मारण मंत्र कहते हैं । मन्त्रों में एक से तीन ध्वनियों तक के मन्त्रों का विश्लेषण अर्थ की दृष्टि से नहीं किया जा सकता है, किन्तु इससे अधिक ध्वनियों के मन्त्रों का विश्लेषण हो सकता है। मन्त्रों से इच्छाशक्ति का परिष्कार या प्रसारण होता है, जिससे अपूर्व शक्ति आती है। जैसे हम सूरज की किरणों को एक कांच के लैंस से इकट्ठा कर लें, तो आग पैदा हो जाती है। क्योंकि सूरज की किरणों में आग छिपी होती है। परंतु पृथक-पृथक रहने से ज्यादा से ज्यादा गरमी पैदा तो हो सकती है किन्तु आग नहीं निकल सकती; लेकिन हां यदि किरणों को एकत्र कर लिया जाए, किरणें इकट्ठी हो जाएं तो आग पैदा हो जाती है। ठीक इसी प्रकार आपके मन में भी बहुत बड़ी ऊर्जा शक्ति छिपी हुई है किन्तु वह अभी अलग-अलग है इसलिए सिर्फ उष्णता रहती है । यदि उसे मंत्रों के द्वारा इकट्ठा कर लिया जाये तो उस आग से अनंतों जन्म के कर्म जल सकते हैं। और आत्मा परमात्मा बन सकती है। अतः जैसे कांच (लैंस) सूर्य की किरणों को इकट्ठा करता है वैसे ही मंत्र हमारी शक्ति (गर्मी) को इकट्ठा करते हैं जिससे बड़ी गर्मी, बड़ी ऊर्जा इकट्ठी (पैदा) होकर कार्य सिद्धि होती है और यदि कोई सतत मंत्रों का प्रयोग करता रहे तो उसके जीवन में अनेक शक्ति की घटनाएं घटना शुरू हो जाएँगीं । हमने इस ग्रन्थ में कुछ मंत्र - यंत्र और तंत्रों को संकलित किया है जिससे आप लाभ उठा सकते हैं और अपने मानव जीवन को सुख शान्तिमय और आनंदमय बना सकते हैं। मंत्र साधना से इहलौकिक ही नहीं पारलौकिक सिद्धि भी होती है। वैसे इस ग्रन्थ में हमने सभी प्रकार के मंत्र यंत्र और तंत्रों का संग्रह किया है जिसमें कुछ अशुभ मंत्रों का वर्णन भी हो सकता है; किन्तु यह पूर्वाचार्यानुसार है; लेकिन साधकों से मेरा सविनय अनुरोध है कि आप मंत्रों का प्रयोग किसी अच्छे कार्य में ही करें, बुरे अशुभ, पाप वर्धक कार्यों में न करें। मारणउच्चाटनादि के प्रयोग भी, कभी भूलकर न करें, क्योंकि अशुभ मंत्रों के प्रयोग से इहलोक 35
SR No.009370
Book TitleMantra Yantra aur Tantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, L000, & L020
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy