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मंत्र यंत्र और तंत्र
मनि प्रार्थना सागर
मुनिराजों ने जब मंत्र सिद्ध किया तो मालूम हुआ कि यह मंत्र शुद्ध नहीं है। तब उसे सही करके सिद्ध किया था। शायद इस कहानी से आप सभी लोग परिचित होंगे।
इस प्रकार के अनेकों उल्लेख जैन आगम में आज भी उपलब्ध हैं। ____ पद्मपुराण में लिखा है कि रावण को ग्यारह सौ विद्यायें प्राप्त थी जिसके प्रभाव से
वह नारायण के अतिरिक्त किसी से भी पराजित नहीं हो सकता था। श्रेष्ठि जिनदत्त को दहेज में अनेक विद्यायें प्राप्त हुई थी। दे. जिनदत्त चरित्र हनुमान विद्याबल के प्रभाव से ही लंका दहन में सफल हुये थे।
श्रीपाल चरित्र में कथानक आता है कि जिस समय रत्नमंजूषा के पिता विवाह योग्य वर की खोज में थे, तब मुनिराज से पूछा- गुरुदेव! मेरी पुत्री का विवाह कब किससे होगा? गुरुदेव अवधिज्ञान के धारी थे, अतः उन्होंने कहा- 'श्रेष्ठी! जो यह सहस्रकूट चैत्यालय बहुत समय से बन्द है, जिस महापुरुष के आगमन से इसके द्वार खुल जायेंगे वही तुम्हारी पुत्री का योग्य वर होगा। इस प्रकार प्रथमानुयोग भी साधुओं के उपकारों से भरा पड़ा है।
मैना सुन्दरी को भी शान्ति का मार्ग- भयंकर कुष्ठ रोग निवारण का मार्ग जंगल में किसने बताया था? मात्र दिगम्बर साधु ने। क्योंकि सच्चे दिगम्बर संत अपाय-विचय धर्मध्यानी होते हैं। और अपाय विचय धर्म ध्यान- मंत्र-यंत्र द्वादशांग के अंग हैं। इसलिए जो साधक दुखी प्राणी के दुखों को दूर करने का चिन्तन करता है वही अपाय-विचय ध्यानी साधक कहलाता है, लेकिन हां उसे आजीविका का अंग न बनाएं। मात्र धर्म प्रभावना व परोपकार की दृष्टि से साधक मंत्रों का प्रयोग कर सकता है। और फिर वैसे भी अपाय-विचय धर्मध्यान के महानेता के चरणों में जो भी जाता है उसका संकट दूर हो ही जाता है। और दूसरी बात संसार में संत, सरिता और सूर्य ही सच्चे परोपकारी हुआ करते हैं।
शायद इसलिए जैन आचार्यों, यतियों, सन्तों ने सूक्ष्म व गम्भीर गवेषणा करके अनेक उपयोगी मंत्रों, यंत्रों व तंत्रों की रचना की और उनका सफल प्रयोग भी किया, लेकिन प्रयोग अत्यन्त आवश्यकता पड़ने पर किया और वह भी केवल परोपकार या संघीय प्रभावना की दृष्टि से किया। यदि आज पूर्ण रूप से खोज की जाए तो निश्चित ही बहुत बड़ा उपयोगी साहित्य मन्त्र विज्ञान नष्ट हो चुका है। और जो शेष बचा है उसे समझने वाले नहीं हैं, क्योंकि मंत्रों को समझना बड़ा मुश्किल काम है और यदि कोई समझता-जानता है तो वह किसी दूसरे को नहीं बतलाना चाहता, इसलिए भी बड़ी मुश्किल होती है; क्योंकि कुछ मंत्रों के अक्षर छूटे हुए हैं, कुछ की विधि छूटी हुई है, किसी का सही अर्थ समझ में नहीं आता आदि अनेकों परेशानियां मंत्रों को पढ़ने में आती हैं। मैंने एक मंत्र पढ़ा था, उसका विधि विधान भी लिखा था और फल में लिखा कि
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