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________________ टीका 1/8) । ओजाहार, लोभाहार और कवलाहार ये तीन प्रकार के आहार हैं । जो आहार ग्रहण करें वे आहारक इसके विपरीत अनाहारक जीव होते हैं। इससे सम्बन्धित विधान इस प्रकार हैं केवली समुद्घात करने वाले (सल्लेखना समाधि मरण) केवली अयोगकेवली और सिद्धअनाहारक जीव तथा शेष आहारक जीव माने गये हैं। मिथ्यादृष्टि, सास्वादन व अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान वाले जीव विग्रहगति में यात्रा करते समय ही अनाहारक रहते है शेष समय आहारक होते हैं। - सयोग केवली गुणस्थान में समुद्घात करने वाला जीव उसके तीसरे चौथे और पाँचवे समय में अनाहारक होता है। अयोगकेवली जीव अनाहारक है। आहारक जीवों में- मिथ्यादृष्टि से सयोग केवली मिथ्यादृष्टि से सयोग केवली गुणस्थान संभव है। , टिप्पणी दिगम्बर परम्परा में सयोगी केवली कवलाहार नहीं करते जबकि श्वेताम्बर परम्परा में केवली कवलाहार करते हैं। विग्रह गति - एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर को ग्रहण करने वाला यात्री जीव हैं। 77
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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