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________________ गुणस्थान केवल त्रियंच और मनुष्य इन दो गतियों में ही होता है इन गुणस्थान में आयु बंध देव गति का होता है। प्रमत्त और अप्रमत्त गुणस्थान केवल मनुष्य गति में पाये जाते हैं जहाँ देवायु बंध संभव है। अप्रमत्त गुणस्थान में आयुबंध का विच्छेद हो जाता है अर्थात अपूर्वकरण आदि सात गुणस्थानों में आयुबंध नहीं होता किन्तु उपशम श्रेणी के चारों गुणस्थानों में चढते उतरते हुए किसी भी गुणस्थान में मरण संभव है। अयोग गुणस्थान से केवलियों का संसार से निर्गमन होता है अतः उपशम श्रेणी और अयोग गुणस्थान में तो जिस गुणस्थान में आयुबंध नहीं होता उसमें भी निर्गमन संभव है जबकि अन्य अवस्थाओं में निर्गमन उसी गुणस्थान सहित संभव है जिस गुणस्थान में आयुबंध संभव हो। गुणस्थानों में इनकी स्थित इस प्रकार हैतीनों सम्यक्त्व - अविरति सम्यकदृष्टि से 11वें गुणस्थान तक संभव। उपशम सम्यक्त्व - मात्र उपशान्त मोह गुणस्थान तक ही रहता है। क्षायिक सम्यक्त्व - अविरति सम्यकदृष्टि से 14वें अयोग केवली गुणस्थान तक संभव। सम्यक्त्व मार्गणा व गुणस्थान सम्बन्धी विधान- सासादन सम्यकदृष्टि जीव एक सासादन सम्यकदृष्टि गुणस्थान में ही होते हैं। - जो सम्यक्त्व से गिरकर मिथ्यात्व को प्राप्त न से सासाधन सम्यग्दृष्टी कहते है। यह गुणस्थान सादि और पारणामिक भाव वाला है। यथा ___ण य मिच्छत्तंव पत्तो सम्मत्तादो य जोदु परिवादो। सो सालिणो त्ति यो सादिय भव पारिणामिओ भावो।।2101| धवला इस गाथा के आधार पर निम्न लिखित विधान किए जा सकते हैं- नारकी जीव मिथ्यादृष्टि सासादन सम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयत सम्यग्दृष्टि होते हैं। ये असंयत सम्यग्दृष्टिगुणस्थान में क्षायिक सम्यकदृष्टि, वेदक सम्यकदृष्टि और उपशम सम्यकदृष्टि होते हैं। - नपुंसकवेदी जीव पंचम गुणस्थान तक प्राप्त कर सकता है। - त्रियंच संयतासंयत गुणस्थान में क्षायिक सम्यकदृष्टि नहीं होते। - देव असंयत सम्यग्दृष्टिगणस्थान में क्षायिक सम्यकदृष्टि, वेदक सम्यकदृष्टि और उपशम सम्यकदृष्टि होते हैं। - प्रमत्त संयत, अप्रमत्त संयत, असंयत और संयतासंयत, उपशम सम्यग्दृष्टि गुणस्थानों से जीवों में औपशमिक सम्यक्त्व पाया जाता है। उपशम, वेदक या क्षयोपशमिक तथा क्षायिक ये सम्यक्त्व के भेद हैं। गुणस्थानों में इनकी उपस्थिति इस प्रकार रहती है- तीनों सम्यक्त्वअविरत सम्यग्दृष्टि से 11वें गणस्थान तक संभव हैं। उपशमसम्यक्त्व- मात्र उपशम गणस्थान तक ही होता है। क्षायिक सम्यक्त्व- अविरत सम्यक्त्व से सयोग केवली तक संभव
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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