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________________ 16. चौदहवां औदायिक मिश्रकाय योग अपर्याप्तिकों (सिद्ध) के होता है इसलिए समुदघात केवली अपर्याप्तक कहे जाते हैं। गुणस्थान सम्बंधी अन्य महत्वपूर्ण विधान1. संज्वलन लोभ का पुनः उदय होने से जीव 11वें गुणस्थान से वापस नीचे गिरता है। 2. केवलज्ञान प्रकट होने के पश्चात जीवात्मा और शरीर का सम्बन्ध जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक तथा अत्कृष्ट नव वर्ष कम एक कोड़ वर्ष पूर्व तक रह सकता है। कषायवंत जीवात्मा प्रथम से दसवें गुणस्थान तक विद्यमान रह सकते हैं। चारित्रवंत आत्मा अंतिम नौ गुणस्थान तक (छठे से 14वें तक) होते हैं। सूक्ष्म जीवात्माओं में मात्र एक मिथ्यात्व ग्णस्थान ही होता है अवती- 4 गुणस्थान तक होते हैं। मोहनीय कर्म की उदीरणा दसवें गुणस्थान तक होती है। __ अपर्याप्त जीवात्मा के तीन- मिथ्यात्व, सास्वादन और सम्यक्त्व गुणस्थान होते हैं। सकषायी जीवात्मा में दस गुणस्थानक तथा अकषायी आत्मा में अंतिम चार गुणस्थानक होते हैं। सात उपयोग में छठवें गुणस्थान से लेकर 12वें गुणस्थान तक समावेश होता है। 11. अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में तेजो,पद,म और शुक्ल ये तीन शुभ लेश्याएं पायी जाती हैं। 12. कृष्णलेश्या में पहले के 6 गुणस्थानक होते हैं। 13. सबसे अधिक गुणस्थानक शुक्ल लेश्या में प्राप्त होते हैं। 14. क्षायिक सम्यक्त्व में चार से चौदह तक कुल 11गुणस्थान होते हैं। 15. मात्र मनुष्य गति में पूरे 14 गुणस्थानक उपलब्ध हो सकते हैं। 16. सिद्धात्माएं गुणस्थानक रहित होती हैं 17. एक चरित्र में पाँच गुणस्थानक होते हैं। सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानक में एक सूक्ष्मसाम्पराय चरित्र तथा 11वें उपशान्त मोह से लेकर 14वें तक यथाख्यातिचारित्र पाया जाता है। 18. इन तीन गुणस्थानकों में अंतर नहीं पड़ता। 12वें- 13वें- 14वें | 19. सबसे कम जीवात्मा 11वें गुणस्थान में सबसे अधिक मिथ्यात्व गुणस्थान में होते है। 20. 5 मार्गणा चौथे गुणस्थान में होती हैं गिरे तो दूसरे तीसरे में और चढे. तो 5वें 7वें में। 21. सम्यक मिथ्यात्व( मिश्र) क्षीणकषाय, सयोगकेवली गुणस्थानों में मरण नहीं होता है। गणस्थानों का काल1. प्रथम गुणस्थान का काल- जघन्य काल- अन्तर्महुर्त, उत्कृष्ट- अनादि अनन्त( अभव्य की अपेक्षा अनादि अनन्त, भव्य की अपेक्षा अनादिसन्त किसी विशेष जीव की अपेक्षा सादि सन्त)। 2- द्वितीय गुणस्थान का काल- जघन्यकाल- एक समय, उत्कृष्ट काल- छह आवली (दो समय से छह आवली पर्यन्त मध्य के सभी विकल्प)।
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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