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________________ उपसहार मानवीय मनो-सामाजिक उपादेयता की विकास यात्रा पथ में..... गुणस्थान अध्ययनः गुणस्थान आध्यात्मिक विकास यात्रा के सोपानो समझने का एक उत्कृष्ट ग्रंथ है। जो जैन धर्म के विविध ग्रंथो, शाश्वत अभिगम तथा विश्व के अन्य धर्मों में वर्णित आध्यात्मिक विकास के सोपानों के साथ सीधा सरोकार रखता है। इन सभी में हूबहू समानता परस्पर दृष्टिगत नहीं होती तो सीधा विरोध भी देखने को नहीं मिलता। गुणस्थान में राग द्वेष रहित सम्यकत्वी सोच आरम्भिक चरण में आकार लेती है जो मानव समाज की वैचारिक विशुद्धता का प्रतिनिधित्व करती है। इस अभिगम को समझकर तथा इस दिशा में विवेकपूर्ण आचरण करके मानव समाज में परस्पर समभाव की प्रथा कोअपनाने की ओर अग्रसर होता है (भौतिकतावाद तथा आध्यात्मिक विकास के मध्य संतुलन स्थपित करता है, तथा धीरे धीरे सतत भौतिकवादिता से ऊपर उठकर मानवीय व आध्यात्मिक मूल्यो में सोच को दृढ़ करता जाता है, संयमित जीवन में अपनी आस्था को निरंतर मजबूत करते हुए सभी के लिए संसाधनों का उपयोग सुलभ बनाता है, प्रकृति के घटकों का अनावश्यक विनाश को बुरा मानता है और सर्व के अस्तित्व के प्रति संवेदनशील बनता है। गुणस्थान विकास यात्रा के अग्रिम चरणों में(देशव्रती आचरण) वह स्पष्ट समझ के इस सोच पर अमल करना आरम्भ करता है जिससे उसकी कथनी करनी का भेद समाप्त हो जाता है। इससे परस्पर विश्वास की जड़े मजबूत होती हैं। संसाधनों के प्रति आसक्ति अर्थात् मोह का क्षय होने से समाजिक विकारों की जड़ो- जर ,जोरु, जमीन आदि को पोषण ही नहीं मिल पाता जो संघर्ष रहित शांतिपूर्ण स्वस्थ समाज की नींव रखी जा सस्थापना की ओर ले जाता है। गुणस्थान विश्लेषण का मनोवैज्ञानिक पक्ष व्यक्ति को समाज एवं सम्पूर्ण समष्टि या सृष्टि के हितों के साथ साम्य स्थापित करने में आन्तिरिक शक्तियों को दृढ़ बनाते हुए सोच को स्पष्ट करता है जिससे वह आवश्यकताओं को उपलब्ध संसाधनों की तुलना में अत्यंत मर्यादित (संयमित) करके परम संतुष्टि का अनुभव करने लगता है, आपाधापी, अनावश्यक संग्रह की वृत्ति की भागदौड़ एवं अनैतिक तथा अविवेकपूर्ण व्यवहारों पर रोक लगाकर स्व विकास की ओर उनमुख होता है। उसमें सकारात्मक मनोवृत्ति का प्रसार होता है, मोहांधता की जगह स्नेहिल वात्सल्यता रहती है तथा उचित अनुचित का बोध रहता है। गुणस्थान की अवधारणा में संसार से जुड़ी अवस्थाओं (4-5 गुणस्थान) में रामराज्य की कल्पना को साकार करने का वातावरण निर्मित करने का पूर्ण अवकाश मिलता है। यह भावनात्मक विशुद्धि मनो-सामाजिक व्यवहारों को मानवीयता के क्षितिज पर उत्कृष्टता प्रदान करने में अहम् भूमिका निभा सकती 165
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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