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________________ गुणस्थान में ले जाता है वहीं शुभाचरण चौथे पाँचवे गुणस्थान तक पहुँचाने में सहायक है। अन्तर्मुखी व्यक्तित्व स्व-केन्द्रित अवस्था का प्रतिनिधित्व करते हुए साधक को साध्य तक पहुँचाने में सहायक है। इसका प्रभाव सातवें से ऊपर के गुणस्थानों में देखा जा सकता है जबकि उभयमुखी व्यक्तित्व जो इन दोनों का मिश्र स्वरूप है इसके प्रभाव में जीव पाँचवे - छटवे गुणस्थानों में गति कराता है। सिगमंड फ्रायड का मनेवैज्ञानिक विश्लेषण व्यक्तित्व की इस तरह स्पष्टता करता है व्यक्तित्व 'इड' (Id) ईगो (Ego ) तथा सुपर ईगो ( Super Ego ) का समायोजन है। 'इड' अचेतन मन है जिसमें मूल वृत्तियाँ व नैसर्गिक इच्छाऐं रहती हैं। 'इगो' चेतना, इच्छाशक्ति, बुद्धि तथा तर्क का प्रतिनिधिपूर्ण संयोजन है एवं सुपर इगो' व्यक्ति के जीवन की आदर्श स्थिति है। ये स्थितियाँ गुणस्थानक अवस्थाओं में जीव के परिणामों की दिशा का निर्धारण करती हैं। आर. बी. कैटल स्पष्टता करते हैं कि "व्यक्ति किसी विशेष परिस्थिति में जो भी कार्य करता है उसका प्रतिरूप ही व्यक्तित्व है" व्यक्ति के चरित्र निर्माण में निम्न घटक उत्तरदायी हैं भावनात्मक एकता (Emotional integration), सामाजिक घटक (Sociability), कल्पनाशीलता (Imaginative), अभिप्रेरण ( Motivation), उत्सुकता (Curiosity) I कैटल द्वारा वर्णित चरित्र निर्माण के कुछ घटक भी साधक की आन्तरिक सुदृढ़ता बढ़ाने में सहायक हैं यथा अभिप्रेरण व उत्सुकता जो उसे उन्नतोन्मुख करती है जबकि लापरवाही अथवा अनदेखी उसे पतोन्मुखी बनाती हैं। कैटल ने व्यक्तित्व गुणों के सारभूत 12 विभाग किए हैं। 1- चक्र विक्षिप्त (Cyclothymia)- ऐसा व्यक्तित्व भावुक तथा अपने विचारों की स्पष्ट अभिव्यक्ति वाला होता है। 2- सामान्य मानसिकशक्ति (General Mental Capacity) - सामान्य स्तरीय बुद्धिमान । 3- प्रशासक(Dominance) - आत्म विशुद्धि व झगड़ालू प्रवृत्ति वाला। 4- प्रसन्न मुख ( Surgency)- आत्मविश्वासु हर्ष, बुद्धि आदि प्रसन्नतादायक गुणों से सम्पन्न । 5- धनात्मक चरित्र (Positive Character)- दूसरों की बातों पर अधिक ध्यान देने वाला । 6- संवेगात्मक परिपक्वता ( Emotional Stable) इनमें अस्थिरता नहीं होती। 7- साहसी चक्र विक्षिप्त ( Adventure Cyclothymia)- ये व्यक्ति साहसी मिलनसार तथा भिन्न लिगं में रुचि लेने वाले होते हैं । 125
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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