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________________ जैनदर्शन के इस आध्यात्मिक विकास के संदर्भ में साधक जीवों की अभिप्रेरणा में दोनों ही वृत्तियों की भूमिका देखी जा सकती है। पापाचार के परिणामों तथा कषायादि की विपरीत परिणति से भयभीत होकर जीव सच्चे साधना पथ का अनुगामी होने की प्रेरणा प्राप्त करता है किन्तु यह प्रेरणा उपशम जैसे अस्थाई भाव वाली प्रतीत होती है। वातावरणीय संयोगो आदि के चलते ज्यों ही यह भय कम होगा त्यों ही पतन सुनिश्चत होगा। इसके विपरीत वाई (y) विचारधारा से अभिप्रेरित साधक अपनी आन्तरिक स्फुरणा के साथ लक्ष्य पथ पर कदम रखता है इसलिए उसमें दृढ़ता का प्रभाव अधिक होता है जो उसे क्षायिकत्व से सुसज्जित कर मंजिल पर पहुँचने तक अभिप्रेरित एवं आन्तरिक रूप से ऊर्जावान बनाए रखता है। 4. व्यक्तित्व (Personality) - व्यक्ति का व्यक्तितव स्थापित अभिवृत्तियों व विश्वासों पर नियन्त्रण करता है यह सर्वथा सत्य नहीं हैं अपितु इनके मध्य पारस्परिक सम्बन्ध अवश्य है (सी.टी. मॉर्गन)। व्यक्तित्व अर्थात् पर्सनलिटी। यह शब्द लेटिन भाषा के परसोना (Persona) से विकसित है जिसका अर्थ है- नकली चेहरा या मुखौटा (Mask)। यह एक बाहरी आवरण है जो दूसरों को प्रभावित करने के लिए धारण किया जाता है। मॉर्टन एवं प्रिंस का मानना है कि "व्यक्तित्व समस्त जन्मजात संस्थानों, आवेगों, झुकावों एवं मूल प्रवृत्तियों के अनुभवों द्वारा अर्जित संस्कारों व प्रवृत्तियों का योग है।" मन एन. एल. व्यक्तित्व को एक समुच्चय के रूप में देखते हुए स्पष्टता करते हैं कि "व्यक्तित्व एक व्यक्ति के पठन, व्यवहार, तकनीकों, रुचियों, दृष्टिकोणों, क्षमताओं व तरीकों का सबसे विशिष्ट संगठन है" आलपोर्ट इस विषय पर अपने 50 बर्ष के अध्ययन के पशचात इस निष्कर्ष पर पहुँचे किव्यक्तित्व का विकास उसकी व्यवस्थापन क्रिया पर आधारित है। व्यक्ति की आवश्कताएं एवं व्यवहार उसको लक्ष्य तक पहुँचाने में प्रेरक हैं। यदि लक्ष्य प्राप्ति में उन्हें एकाध बार असफलता मिलती है तो व्यक्तित्व के सम्यक विकास में बाधा पड़ती है। वह तब तक व्यवस्थित नहीं हो पाता जब तक उसकी इच्छाओं की दिशा को बदलकर संतुष्ट न कर दिया जाय। आन्तरिक व्यक्तित्व पक्ष की स्थितियाँ इस प्रकार भी हो सकती हैं 1- विचार प्रधान (Thinking type) व्यक्तित्व 2- भाव प्रधान (Feeling type) व्यक्तित्व 3- तर्क बुद्धि प्रधान (Reasoning type) व्यक्तित्व 4- दिव्य दृष्टि प्रधान (Intuitive type) व्यक्तित्व व्यक्ति उपरोक्त वर्णित विवरण व उसकी शाब्दिकता- परसोना या मुखौटा के दायरों से बाहर निकलकर समग्रता के परिप्रेक्ष्य में आन्तरिक एवं बाह्य पक्षों के साथ व्यक्तित्व के 123
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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