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________________ काल द्रव्य के लक्षण दव्वपरिवहरूवो जो सो कालो हवेइ ववहारो। परिणामादीलक्खो वट्टणलक्खो य परमट्टो||21|| द्र. सं.।। लोयायासपदेसे इक्किके जे ठिया हु इक्किका। रयणाणं रासी इव ते कालाणु असंखदव्वाणि।।22।। द्र. सं.।। जो द्रव्यों के परिवर्तनरूप परिणामरूप देखा जाता है वह तो व्यवहार काल है और वर्तना लक्षण का धारक जो काल है वह निश्चय काल है। जो लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर रत्नों की राशि के समान परस्पर भिन्न होकर एक-एक स्थित हैं वे कालाणु हैं और असंख्यात द्रव्य सप्त तत्त्व और नौ पदार्थ का लक्षण आसव बंधण संवर णिज्जर मोक्खो सम्पुणपावा जे। जीवाजीवविसेसा ते वि समासेण पभणामो।।28।। द्र. सं.।। आश्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य और पाप ये सात तत्त्व तथा जीव व अजीव के साथ नौ भेद-रूप पदार्थ हैं । आश्रव का लक्षण आसवदि जेण कम्मं परिणामणप्पणो स विण्णेओ। भावासवो जिणुत्तो कम्मासवणं परो होदि।।29।। द्र. सं.।। जिस परिणाम से आत्मा के कर्म का आश्रव होता है वह भावाश्रव है तथा भावाश्रव से भिन्न ज्ञानावरणादिरूप कर्मों का जो आश्रव है सो द्रव्याश्रव है। बंध के भेद पयदिह अणुभागप्पदेसभेदादु चदुविधो बंधो। जोगा पयडिपदेसा ठिदअणुभागा कसायदो होति।।33।। द्र. सं.।। प्रकृति स्थिति अनुभाग व प्रदेश ये चार प्रकार के बंध हैं। इनमें योगों से प्रकृति तथा प्रदेश बंध होते हैं और कषायों से स्थिति तथा अनुभाग बंध होते हैं। संवर का लक्षण चेदणपरिणामों जो कम्मस्सासवणिरोहणे हेदु। सो भावसंवरो खलु दव्वासवरोहणे अण्णो।।34।। द्र. सं.।। बदसमिदीगुत्तीओ धम्माणुपेहा परीसहजओ य । चारित्तम बहुभेया णायव्वा भावसंवरविसेसा।।35।। द्र. सं.।। जो चेतन का परिणाम कर्म के आश्रव को रोकने का कारण है उनको निश्चय से भावसंवर कहते हैं और जो द्रव्यासंवर को रोकने में कारण है वह द्रव्य संवर है। भावसंवर के भेदों में शामिल हैं- पाँचव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति, दश-धर्म, बारह अनुप्रेक्षा, 22 परीषहों का जय तथा अनेक प्रकार का चारित्र आदि। 111
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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