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________________ अध्याय-7 द्रव्यसंग्रह में गुणस्थानक सिद्धान्त द्रव्य संग्रह प्राकृत साहित्य का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें जीव के अधिकारों व स्थितियों का वर्णन है।चूँकि गुणस्थान का सम्बन्ध भी जीव से एवं इसकी आध्यात्मिक उन्नति-अवनति की दशाओं से है इसलिए इस ग्रंथ का अध्ययन प्रस्तावित अभ्यास के संदर्भ में प्रासंगिक हो जाता है। इसमे गुणस्थानक प्रतिमानों की शोध निम्नवत् रूप में की गई हैबृहदद्रव्यसंग्रह व गुणस्थानक स्थितियां- षद्रव्य व पंचास्तिकाय का निरूपण एवं छव्भेदमिदं जीवाजीवप्पभेददोदव्वं। उत्तं कालविजुत्तं णादव्वा पंच अत्थिकाया दु।।23।। द्र. सं.।। ___ संति जदो तेणेदे अत्थिति भणंति जिणवरा जम्हा। काया इव बह देसा तम्हा काया य अत्थि काया य।।24||द्र. सं.।। इस गाथा के माध्यम से जीवादि छः द्रव्यों का निरूपण किया गया है इनमें काल के अलावा शेष पाँच अस्तिकाय हैं कारण जीव पुद्गल, धर्म, अधर्म तथा आकाश ये पाँचो द्रव्य विद्यमान हैं इसलिए इन्हें अस्ति माना जाता है। ये काय के समान बहु प्रदेशों को धारण करते हैं इसलिए इनको काय (पंच + अस्ति + काय = पंचास्तिकाय)। जीवादि के नौ अधिकारों का सूचन - जीवो उवओगमओ अमुत्ति कत्ता सदेहपरिमाणो। भोत्ता संसारत्थो सिद्धो सो विस्ससोढ़डगई ||2|| द्र. सं.।। जो उपयोगमय है, निज शरीर के बराबर है, भोत्ता है, संसार में स्थित है, सिद्ध है और स्वभाव से ऊर्ध्वगमन करने वाला है, वह जीव है। चौदह जीव समासों का वर्णन समणा अमणा णेया पंचेन्दिय णिम्मणा परे सव्वे। बादरसुहमेइंदी सव्वे पज्जत्त इदरा य।। 12 || द्र. सं.।। पंचेन्दिय जीव संज्ञी और असंज्ञी से दो प्रकार के जानने चाहिए और दो इन्द्रिय, त्रि-इन्द्रिय, चौ-इन्द्रिय ये सब मन रहित असंज्ञी हैं। एकेन्द्रिय बादर और सूक्ष्म दो प्रकार के हैं और ये पूर्वोक्त सातों पर्याप्त तथा अपर्याप्त हैं ऐसे 14 जीव समास हैं। चौदह गुणस्थान और चौदह मार्गणास्थानों का वर्णन मग्गणगुणठाणेहि य चउदसहि हवंति तह अशुद्धणया। ___विण्णेया संसारी सव्वे सुद्धा हु सुद्धणया।। 13 ।। द्र. सं.।। संसारी जीव अशुद्ध नय से चौदह मार्गणास्थानों से तथा चौदह गुणस्थानों से चौदह-चौदह प्रकार के होते हैं और शुद्ध नय से तो सब संसारी जीव शुद्ध ही हैं। सिद्धजीव का स्वरूप और जीव के उर्धवगति स्वभाव का वर्णन णिकम्मा अद्वगुणा किंचूणा चरमदेहदो सिद्धा। । लोयग्गठिदा णिच्चा उप्पादवएहिं संजुत्ता।।14|| द्र. सं.।। 109
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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