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प्रकाशकीय श्री अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् दिगम्बर जैन समाज के शीर्षस्थ विद्वानों की पुरातन प्रतिष्ठित संस्था है, जिसकी स्थापना प्रातः स्मरणीय पूज्य गणेशप्रसादजी वर्णी द्वारा वीर शासन जयन्ती के दिन सन् 1944 में की गई थी। इस संस्था का अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा है।
विद्वत्परिषद् के प्रख्यात विद्वानों द्वारा देशभर में शिविरों एवं संगोष्ठियों का आयोजन किया जाता रहा है। सिद्धान्तचक्रवर्ती पूज्य आचार्य श्री विद्यानन्दजी मुनिराज के ससंघ पावन सान्निध्य में 18 से 22 अप्रैल 1999 तक संस्था का स्वर्णजयन्ती समारोह एवं समयसार वाचना वर्ष आयोजित किया गया, जिसमें वर्षभर संगोष्ठियों एवं वाचनाओं की धूम मची रही। इनमें आचार्य श्री विद्यानन्दजी, आचार्य श्री धर्मभूषणजी, श्रवणबेलगोला के भट्टारक स्वस्तिश्री चारूकीर्तिजी एवं वयोवृद्ध विद्वान पण्डित नाथूलालजी शास्त्री इन्दौर के सान्निध्य में हुई वाचनायें प्रभावपूर्ण रहीं।
विद्वत्परिषद् द्वारा समय-समय पर राष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन, विधान-पूजन प्रशिक्षण शिविर, ध्यान व सामायिक शिविर, विद्वत्सम्मान आदि महत्वपूर्ण कार्य तो किये ही जाते हैं। इनके अतिरिक्त इस संस्था ने सत्साहित्य-प्रकाशन के क्षेत्र में भी
अपना कदम बढ़ाया है। संस्था द्वारा अब तक लोकोपयोगी 23 पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है। ___ इसी श्रृंखला में अ.भा.दि.जैन विद्वत्परिषद् से लगभग 18 वर्षों से जुड़े युवा विद्वान डॉ. संजीवकुमार गोधा द्वारा लिखित 'कालचक्र' नामक पुस्तक का प्रकाशन किया जा रहा है। गोधाजी आज देश-विदेश में ख्यातिप्राप्त प्रवचनकार विद्वान के रूप में उभरकर सामने आ रहे हैं। सम्पूर्ण भारतवर्ष के साथ-साथ आप कनाडा एवं अमेरिका के अनेक शहरों में जाकर तत्त्वज्ञान के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
जैनदर्शन के परिप्रेक्ष्य में कालद्रव्य का सर्वांगीण, तर्कसंगत, शोधपरक, प्रस्तुतिकरण करने वाली यह 'कालचक्र' नामक कृति निश्चित ही पाठकों को इस विषय का समग्र ज्ञान करायेगी। आप सभी इसका भरपूर लाभ उठावें, इसी आशा के साथ।
- अखिल जैन 'बंसल' महामंत्री-श्री अ.भा.दि.जैन विद्वत्परिषद्