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________________ ५०४ श्रीदर्शवकालिकमृत्रे पुरुषार्थ भी कुजा करना चाहिये, और मिक्षा न मिलने पर वह अलाभु-आन मुझे भिक्षा नहीं मिली त्ति इस मकार न सोइज्जा-सोच न करे, किन्तु तवुआज मेरे अनशन ऊनोदरी आदि तप हुआ है ति इस प्रकार सोचकर अहियासए क्षुधा-परीपहको सहन करे-सन्तुष्ट रहे । तात्पर्य यह है कि साधुओंको सिर्फ भिक्षाके ही लिए गोचरीमें घुमना नहीं है किन्तु वीर्याचारके लिए भी भगवान ने गोचरी धुमना कहा है ॥६॥ टीका-'सइ' इत्यादि । भिक्षुः काले-भिक्षोचितसमये माने सति, यद्वा 'सइकाले' इत्यस्य 'स्मृतिकाले' इतिच्छाया तत्र-स्मर्यन्ते साधको दावभिर्दानार्थ यस्मिन् समये तस्मिन्नित्यर्थः, चरेद-भिक्षार्थ गच्छेत् । पुरुषकारं-पराक्रमम् उत्साहपूर्वकभिक्षार्थभ्रमणलक्षणं कुर्याद-विदध्यात् । कदाचिदलाभे सति अलाभाअध भिक्षालाभो न संजात इति न शोवेदन परितपेव, किन्तु तपा- अध मेऽनशनात्रमौदरिकादिरूपं तपः सम्पन्नमिति कृत्वा अधिपहेत-सन्तुप्येत । भिक्षाया अलाभेऽपि वीर्यचारो मया सम्यगाराधितः, यतो न केवलमन्नार्थमेव भिक्षाचरणं भिक्षुणां, किन्तु वीर्याचारार्थमपि भगवता समादिष्टमिति भावार्थः ॥ ६ ॥ 'सइ काले' इत्यादि। भिक्षु उचित समय प्राप्त होनेपर ही भिक्षाके लिए जावें। उत्साहपूर्वक भिक्षार्थ भ्रमणरूप पुरुषार्थ करें । कभी भिक्षाका लाभ न हो तो ऐसा सोच न करें कि 'आज मुझे भिक्षा नहीं मिली, किन्तु ऐसा विचार करके सन्तुष्ट रहें कि-आज भिक्षा न मिली तो सहज ही मेरे अनशन आदि तप होगया, अर्थात् भिक्षाका लाभ न होनेपर भी मैंने भली भाँति वीर्याचारका आराधन किया है। साधु केवल अनादिककी प्राप्तिके लिए भिक्षाचरी नहीं करते किन्तु वीयोंचारकी आराधनाके लिए भी भिक्षाचरीमें जानाभगवान्ने बताया है ॥६॥ सइ काले० ७त्या. लि लयित समय Unior लक्षाने भाटे जय. ઉત્સાહપૂર્વક ભિક્ષાર્થ ભ્રમણરૂપ પુરૂષાર્થ કરે. કેઈવાર ભિક્ષાને લાભ ન થાય તે એ વિચાર ન કરે કે “આજ મને ભિક્ષા ન મળી.” પરંતુ એ વિચાર કરીને સંતુષ્ટ રહે કે-આજ ભિક્ષા ન મળી તે સહેજે મારાથી અનશન આદિ તપ થઈ ગયું. અર્થાત ભિક્ષાને લાભ ન થવાથી પણું મેં હીપેઠે વીર્યાચારનું આરાધન કર્યું છે સાધુ કેવળ અન્નદિની પ્રાપ્તિને માટે જ ભિક્ષાચરી કરતા નથી, કિ તું વીર્યાચારની આરાધનાને માટે પણ ભિક્ષચરીમાં જવું सावाने व्युं छे. (६)
SR No.009362
Book TitleDashvaikalika Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages725
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size21 MB
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