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________________ ঋীক্ষান্তি। कदापि गोचरी नहीं जाये। भावार्थ-ऐसे स्थानमें गोचरी जानेसे कुत्ते आदिके फाटरखाने आदिके कारण क्या पात्रे फूटनाने आहार गिरजाने आदि अनेक भकारसे संयम और आत्मा दोनोंकी विराधना होती है ॥१२॥ टीका-यानं कुक्कुरं, 'ER-मितीहाउपप्प सम्बध्यते, तथाच-दसम्-उदवं दंशनस्वभावम् उन्मादिनं वेत्यर्थः, नमस्तसन्या अप्युपलक्षणमेतत् । मृतांना प्रसूतां गां-सौरमेयी, नवममूतमहिप्या अप्युपलक्षणाद् ग्रहणम् , चण्डस्त्रमा गोणंचपमं, इयं घोटकं, गज हस्तिनं च, संडिन्म शिशुक्रीडनस्थान, कलहवाग्युद्ध, युद्धम् दण्डादण्डि-शखाशस्ति-प्रभृतिकम् दूरतः परिवर्जयेत् , आत्मसंयमोभयविराधनातुसात् ॥१२॥ गमनप्रकारमाह--'अणुन्नए' इत्यादि । मूलम्-अणुन्नए नावणए अप्पहिडे अणाउले। इंदियाई जहाभागं दमइत्ता मुणी चरे ॥१३॥ छाया-अनुन्नतो नावनतोऽमहष्टोऽनाकुलः । इन्द्रियाणि यथाभार्ग, दमयित्वा मुनिश्चरेत् ॥१३॥ जहां उन्मत्त (पागल हडक्या) या काटनेवाला कुत्ता, नयी बियाई हुई (प्रसूता) कुतिया, नवप्रसूता गाय या नवप्रसूता भैंस आदि, मदा न्मत्त बैल, घोड़ा हाथी हों उस स्थानको, तथा बच्चोंके खेलनेके, कलह (मुँहकी लडाई) के और युद्ध (शस्त्रकी लड़ाई) के स्थानको साधु दरसे त्यागे । अर्थात् जहाँ ये सब हों वहां न जावे-दर ही रहे, क्योंकि इससे आत्मविराधना संयमविराधना और उभयविराधना होती है ॥१२॥ चलनेका प्रकार कहते हैं-'अणुन्नए.' इत्यादि । ज्या जन्मत्त (arist-85121) अथवा १२नारोतरा, नवी वीयायसी (प्रसूता) કતરી, નવપ્રસૂતા ગાય યા નવપ્રસૂતા ભેંશ આદિ, મદેમત બળદ ઘાડે હાથ ઈત્યાદિ હોય તે સ્થાનને, તથા બાળકેએ રમવાન, કલહ (મહેની લડાઈ)ના અને યુદ્ધ (શશ્વની લડાઈ)ના સ્થાનને સાધુ દૂરથી જ ત્યાગે, અર્થાત્ જ્યાં એ બધાં હોય ત્યાં ન જાય-જૂર જ રહે, કારણ કે તેથી આત્મવિરાધના, સંમવિરાધના અને ઉભયવિરાધના થાય છે. (૧૨) पानी प्रहार ५ छे-अणुनए. त्याहि.
SR No.009362
Book TitleDashvaikalika Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages725
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size21 MB
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