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________________ श्रीदशीकालियो उभयकायशस्र-परशदात्रादि । माषणसं तु नं पति मनोमालिन्यम् ॥ ४ ॥ सम्मति वनस्पतिमेव सविशेएं वर्णयति-तंजहा' इत्यादि । मूलम्-तंजहा-अग्गवीया मूलवीया पोरवीया,खंधवीया बीयरुहा संमुच्छिमातणलया वणस्सइकाइया समीया चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्य सस्थपरिणएणं ॥५॥ छाया-तद्यथा-अग्रवीना मूलयीनाः पर्वबीजाः स्कन्धवीजा: वीजरुहाः सम्मच्छिमास्कृणलता वनस्पतिकायिकाः सीनाविषयन्त आख्याता अनेकजीवाः पृथक्सचा अन्यत्र शस्त्रपरिणतेभ्यः ॥५॥ यहां वनस्पतिकायका विशेष वर्णन करते हैं सान्वयार्थः-तंजहा-वह इस प्रकारसे है-अग्गयीया-जिनका बीज अग्रभागमें होता है, मूलवीया-जिनका चीन मूलभागमें होता है, पोरयीयानजिनका पोज पोर (सन्धि) में होता है, खंधयीया-निनका वीज स्कन्ध (डाले) में होता है, बीयरुहा-धीजसे उगनेवाले, संमुच्छिमा विना वीजके उत्पन होनेवाले, तणलया-तृण और लताएँ; ये सभी वणस्सइकाइया बनस्पतिकायिक हैं, सबीया पूर्वोक्त अपने-अपने नामप्रकृतिके उदयसे उत्पन्न हुए वीजसहित सब वनस्पतिकाय चित्तमंत सचित्त अक्खाया-कहे गये हैं। अन्नत्य-सिवाय सत्थपरिणएणं-शस्त्रपरिणतके ये बनस्पतिकाय अणेगजीवाअनेक जीववाले और पुढोसत्ता भिन्न-भिन्न सत्तावाले हैं ॥५॥ ____टीका-तथाहि-अग्रवीजा अग्रे अग्रभागे वीजं येषां ते तथा कोरण्टकादयः। (फरसा) दान आदि उभयकाय शस्त्र हैं। भावशस्त्र उसके प्रति मनके परिणाम दुष्ट करना ॥४॥ अय वनस्पतिकायका विशेष वर्णन करते हैं-'तं जहाँ इत्यादि । अग्रवीज-जिनके बीज अग्र-भागमें होते हैं ऐसे कोरंटक आदि अग्रवीज कहलाते हैं। પત્થર આદિ પરકાયશસ્ત્ર છે. કહાડે, દાતરડું આદિ ઉભયકાય શસ્ત્ર છે. ભાવશ એની પ્રતિ મનને પરિણામ દુર કરવા તે. હવે વનસ્પતિકાયનું વિશેષ વર્ણન કરે છે–āન ઈત્યાદિ. અબીજ–જેનાં બીજ અગ્રભાગમાં હોય છે એવાં કરંટક (હજરી ગુલ). આદિ અઝબીજ કહેવાય છે.
SR No.009362
Book TitleDashvaikalika Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages725
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size21 MB
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