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________________ श्रीमान् न्यायतीर्थ पण्डित माधवलालजी खीचन से लिखते हैं किःउन पंडितरत्न महाभाग्यवंत पुरुपों के सामने उनकी अगाधतत्त्वगवेपणा के विषय में में नगण्य क्या सम्मति दे सकता हूं। परन्तु : मेरे दो मित्रों ने जिन्होंने इसको कुछ पढा है बहुत सराहना की है वास्तव में ऐसे उत्तम व सबके समझाने योग्य ग्रन्थों की बहुत आवश्यकता है और इस समाज का तो ऐसा ग्रन्थ ही गौरव बढा सकते हैं-ये दोनों ग्रन्थ वास्तव में अनुपम है ऐसे ग्रन्थरत्नों के सुप्रकाश से यह समाज अमावास्या के घोर अन्धकार में दीपावली का __ अनुभव करती हुई महावीर के अमूल्य वचनों का पान करती हुई अपनी उन्नति में अग्रसर होती रहेगी। ता. २९-११-३६ अम्बाला (पंजाय) पत्र आपका मिला श्री श्री १००८पंजाव केशरी पूज्य श्री काशीरामजी महाराज की सेवा में पढ कर सुना दिया। आपकी भेजी हुई उपासकदशाङ्ग सूत्र तथा गृहिधर्मकल्पतरु की एक प्रति भी प्राप्त हुई। दोनों पुस्तकें अति उपयोगी तथा अत्यधिक परिश्रम से लिखी हुई हैं, ऐसे ग्रन्थरत्नों के प्रकाशित करवाये की बडी आवश्यकता है । इन पुस्तकों से जैन तथा अजैन सबका उपकार हो सकता है। आपका यह पुरुपार्थ सराहनीय है। आपका शशिभूपण शास्त्री अध्यापक जैन हाई स्कूल अम्बाला शहर.
SR No.009362
Book TitleDashvaikalika Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages725
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size21 MB
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