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गणधराणां नामादिकम्
कल्पसूत्रे
रहित सरल स्वभावी अनुक्रम से वाचक पद की प्राप्ति के कर्ता को नमस्कार होवे।४। सशब्दार्थे
मूलम्-गोविंदाणंपि नमो, अणुओगी विउल धारणिंदाणं ॥ खंतिदयाणं ।।८९२||
परूवणे दुल्लभिंदाणं ॥४१॥
भावार्थ-२७ गोविन्दाचार्य बहुत विस्तार सहित सूत्रार्थ के धारक और दातार सदैव क्षमावंत दयावंत सर्व पुरुषों में शुद्ध श्रावक की करणी के प्ररूपक ऐसे पुरुष IMA की प्राप्ति ही इस लोक में बड़ी दुर्लभ है जिनको वंदन ॥४१॥
- मूलमू-तत्तो य भूयदिन्नं, णिच्चं तव संजमे अनिव्विणं ॥ पंडिय जणसामण्णं ॥ वंदामि संजमं विहण्णु ॥४२॥
- भावार्थ-- तब फिर भूतदिन्न साधुजी सदैव १२ प्रकार तप और १७ प्रकार का संयम पालते हुए थके नहीं पंडित लोग को चारित्र बनाकर साता उपजाने वाले, संयम की विधी के जानकार को वंदन ॥४२
SEEICCES
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