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गणधराण नामादिक
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कल्पसूत्रे । के कर्ता को वंदना ॥३५॥ संशब्दार्थे
- मूलभू-अयलपुरम्म क्खेत्ते कलियसुय अणुगिए धीरे ॥ बंभद्दीवग सीहे, ॥८९०॥
वायगं पयमुत्तमं पत्ते ॥३६॥ ..
भावर्थ--२३ ब्रह्मदीपक सिंह आचार्य जो अचलपुर से संयम लेकर निकले कालि कसूत्र तथा चारों अनुयोग के धारक धैर्यवंत वाचको में उत्तमपद के प्राप्त करने वाले को वंदना करता हूं ॥३६॥
र मूलम् जेसि इमो अणुओगो, पयरइअन्जविअद्ध भरहमि ॥ बहु नयरनिग्गजसे, तं वंदे क्खंदिलायरिए ॥३७॥
भावार्थ--२४ खंदिलाचार्य, आजतक जो अर्थादि की प्रवर्ती हो रही और दक्षिण भरत के नगरों में जिन का यश विस्तार पाया है ॥३७॥
मूलम्-कालियसुय अणुओगस्स, धारए धारएय पुव्वाणं ॥ हिमवंत
॥८९०॥