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________________ कल्पसूत्रे वादी संख्या चार सौ शासन काल २१ हजार वर्ष, कितना पाट मोक्ष में गया दो पाट, सशब्दार्थे शासनदेव मतंग, शासनदेवी सिद्धा, पूर्वभव संबन्धी नाम नन्दन ॥ मूलम् - वंदे उसभ अजियं, संभव मभिणंदणं सुमइ, सुप्पभ - सुपासंसारी, पुप्फदंत सीयलं सिज्जसं वासुपूज्जं च ॥ २०॥ विमल मणंतयधम्मं, संति कुंथुं अरं च मल्लिं च ॥ मुणिसुव्वय नमिरिट्ठनेमि, पासं तहा वद्धमाणं च ॥२१॥ भावार्थ- अब चौवीस तीर्थकरों के गुणानुवाद करते हैं - (१) चौदह स्वप्न में से प्रथम वृषभ स्वप्न देखा इसलिये तथा वृषभ का लंछन देखकर ऋषभदेवजी नाम दिया, २ चोपट पासे के खेल में गर्भ के प्रभावकर हरवक्त राजा से रानी की जीत होती देख अजितनाथ नाम दिया, ३ देश में धान्य का बहुत समूह उत्पन्न हुआ देखकर संभव नाम दिया, ४ इन्द्रो ने आकर माता पिता का बारम्बार अभिस्तव किया जिससे अभिनन्दन नाम दिया, ५ माता की सुमति हुई देख सुमतिनाथ नाम दिया, ६ पद्म ॥८८०॥ 6006 महावीर प्रभोः चरित्रम् ॥८८०॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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