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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे
॥७३७॥
सिद्धसंपयाणं अट्ठसया अणुत्तरोववाइयाणं गइकल्लाणाणं ठिइकल्लाणाणं आगमेसिभद्दाणं उक्कोसिया अणुत्तरोववाइयसंपया होत्था । दुविहाय अंतगडभूमी होत्था । तं जहा-जुगंत गडभूमी य परियायंतगड भूमी य ॥ ४४ ॥
शब्दार्थ - [तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स इंदभूइप्पभिईणं (१४०००) चउद्दससहस्ससाहूणं उक्किट्ठा साहुसंपया होत्था] उस काल और उस समयमें श्रमण भगवान् महावीरकी इन्द्रभूति आदि चौदह हजार साधुओंकी उत्कृष्ट साधु संपदा थी [चंदनबाला पभिईणं (३६००० ) छत्तीस समणी साहस्तीणं उक्किट्ठा समणीसंपया] चन्दनबाला आदि छत्तीस हजार साध्वियोंकी उत्कृष्ट साध्वी संपदा थी. (संखपोक्खलिप्पभिईणं (१५९०००) एगूणसद्विसहस्तम्भहियाणं एगसय सहस्स समणोवासियाणं उकिट्ठा समणोवासिय संपया] शंख पुष्कलि आदि एकलाख उनसठ हजार श्रावकों की उत्कृष्ट श्रावक सम्पदा थी [सुलसा रेवइपभिईणं (३१८०००)
भगवत्प
|रिवारवर्णनम्
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