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________________ कल्पसूत्रे सम्पूर्ण, सब प्रकारकी रुकावटों से रहित, सब प्रकारके आवरणों से रहित, सब प्रकार । गौतम- - स्वामिनः सशब्दार्थे की द्रव्य क्षेत्र काल भाव संबन्धी परिधियों से रहित तथा शाश्वतस्थायी और ...॥ विलापः . ॥७३३॥ सर्वोत्तम केवल ज्ञान और केवल दर्शन उत्पन्न हो गया। भगवान् गौतम सर्वज्ञ और केवलज्ञान प्राप्तिश्च सर्वदर्शी हो गये । उस समय भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिषिक और विमानवासी चारों .. निकायों के देवों और देवियों ने अपनी-अपनी ऋद्धि-समृद्धि के साथ गौतम स्वामी के ... पास आकर केवल ज्ञानका महोत्सव मनाया। उस समय तीनों लोकों में खूब आनन्द ही आनन्द हो गया। महापुरुषों की सभी क्रियाएं हितकारिणी ही होती हैं । देखिए न, गौतमस्वामी को अपनी विद्याका अहंकार हुआ तो उससे उन्हें सम्यक्त्वकी प्राप्ति हुई । अर्थात् अहंकार से प्रेरित होकर वे भगवान् को पराजित करने चले तो सम्यक्त्व प्राप्त हुआ। इसी प्रकार उनका राग भाव गुरुभक्ति का कारण बना। भगवान् के वियोग से उत्पन्न हुआ खेद केवलज्ञान की प्राप्तिका कारण हो गया । इस प्रकार ॥७३३॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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