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________________ ॥६९२॥ कन्यकानां · कल्पसूत्रे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ वंदित्ता ! चन्दन सशब्दार्थ बालादि णमंसित्ता एवं वयासी-अलित्तेणं भंते लोए जाव धम्ममाइक्खह तए णं समणे राज भगवं महावीरे चंदणबालं अग्गे काउं तासं रायकण्णयाणं सयमेव पव्वावेइ दीक्षातएणं सा चंदणबाला पामोक्खा अज्जाओ संजमइ जाव गुत्तबंभचारिणी जाया। ग्रहणादिकं | पुणो य बहवे उग्गभोगाई कुलप्पसूया नरा नारीओ य पंचाणुव्वइयं सत्तFill सिक्खावइयं एवं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जिय समणोवासया जाया। तए से समणे भगवं महावीरे तित्थयरनामगोयकम्मक्खवणटुं समण समणी सावयसावियारूवं चउव्विहं संघ ठाविय इंदभूइ पभिईणं गणहराणं'उप्पन्ने वा विगमे वा धुवे वा' इय तिवई दलइ। एयाए तिवईए गणहरा दुवालसंगं गणिपिडगं विरइयंति । एवं एगारसण्हं गणहराणं नव गणा जाया। ॥६९२॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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