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________________ कल्पसूत्रे प्रवजनादि विधि निरूपणम् । ॥६१७॥ iml पुण विहिं उवदंसेमि समणाउसो पव्वजाए समएणं जाव पढमं तिक्खुत्तो सन्दार्थे 3 सद्धिं सव्वे निग्गंथे वंदेइ नमसेइ तओ पच्छा चोलपट्टगं धारेइ । Iril एवं उरोबंधणं (चद्दर) धारे तओ पच्छा गोयमा ! सलिंगं मुहपत्तिं मुहेण सद्धिं IM बंधे मुहपत्तीणं भंते किं पमाणे ! गोयमा! मुह पमाणा मुहपत्ति मुहपत्तीणं All भंते ! केण वत्थेण किज्जइ ? गोयमा! एगस्स वि सेय वत्थस्स णं अट्ट पुडलं | मुहपत्ति करेज्जा। कस्स ट्रेणं मुहपत्तीणं अटु पुडला ? गोयमा! अट्र कम्मIA दहणट्ठयाए एग कण्णओ दुच्च कण्णप्पमाणेणं दोरेण सद्धिं मुहे बंधेज्जा से all केणद्वेणं भंते मुहपत्ति त्ति पवुच्चइ ? गोयमा ! जण्णं मुहे अंते सइवट्टति से तेणद्वेणं मुहपत्ति त्ति पवुच्चइ ? कस्सटे भंते ! मुहपत्तिं दोरेण सद्धिं बंधइ ? गोयमा ! सलिंग वाउ जीवरक्खणट्ठाए मुहपत्तिं बंधेइ । जइ णं भंते ! मुहपत्ती ॥६१७॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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