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शङ्का
कल्पसूत्रे की प्राप्ति होजाने पर दरिद्रता का नाश हो जाता है।
Imm इन्द्रभूतेःसशब्दार्थे श्रमण भगवन् महावीरस्वामी से धर्म का श्रवण करके और उसे हृदय में धारण
निवारणम् ॥५२३॥
करके हृष्टतुष्ट यावत् हृदयवाला होकर के अपनी उत्थान शक्ति से ऊठा ऊठ करके प्रतिवोधश्च श्रमण भगवान् महावीर को तीनवार आदक्षिणा प्रदक्षिणा की आदक्षिणा प्रदक्षिणा करके वंदना नमस्कार किया वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार बोले हे भगवन् मैं निर्ग्रन्थ प्रवचनों पर श्रद्धा करता हूं, हे भगवन् ! मैं निर्ग्रन्थ के प्रवचनों पर प्रतीती रखता । हूं, हे भगवन् ! मैं निग्रन्थ के प्रवचनों पर रुचि करता हूं, हे भगवन् ! मैं निर्ग्रन्थ प्रव
चनों को स्वीकार करता हूं, हे भगवन् ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन इसी प्रकार है, हे भगवन् | यह यथावत् ही हैं, हे भगवन् ! यह प्रवचन सत्य है, हे भगवन् ! यह प्रवचन संदेह mil रहित है । हे भगवन् ! यह प्रवचन इष्ट कारी है । हे भगवन् ! यह प्रवचन प्रतिष्ठ है। हे भगवन् ! यह प्रवचन प्रतिष्ठित है। वह ऐसा ही है जैसे आप कहते हो। इस
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