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कल्पसूत्रे सशब्दार्ये ॥४ ॥
जन्ममहोत्सवः
| वचन सुनो शक देवेन्द्र आज्ञा करते हैं यावत् उनके पास शीघ्रमेव आवो सू-७ शक्रेन्द्रक्रत
तीर्थकर___मूलम्-तएणं ते देवा य देवीओ य एयमटुं सोच्चा हट्टतुट्ठ जाव हियया- 19 अप्पेगइया वंदणवत्तियं एवं सक्कारवत्तियं, सम्माणवत्तियं दंसणवत्तियं कोउहलवत्तियं जिणसभत्तिरागेण अप्पेगइया सक्कस्स वयणमणुवट्टमाणा अप्पेगइया अण्णमण्णमणुवहमाणा अप्पेगइया जीयमेय एवमाइ त्तिकटु जाव पाउन्भवति।। .. भावार्थ-तब वे देव और देवियां ऐसा सुनकर हृष्टतुष्ट होते है। कितनेक वंदन
करने के लिये कितनेक (आदर) करने के लिए कितनेक सत्कार के लिये सन्मान के al लिये दर्शन के लिए कुतूहल के लिए जिनदेव की भक्तिके लिए कितनेक तीर्थकरके | वचनों के अनुवर्ती बनेहुए कितनेक एक एक के अनुवर्ती बने हुए कितनेक यह हमारा | जीताचार है ऐसा मानकर शक देवेन्द्र के पास जाते हैं ॥सू-८॥