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कलपत्र
सन्दा
जगमनादि
__शब्दार्थ-[तएणं] तत्पश्चात् [समणे भगवं महावीरे] श्रमण भगवान् महावीर
षष्ठक्षपण
Kril पारणार्थ IS [कल्लं] दूसरे दिन [पाउप्पभायाए रयणीए] जिस में प्रभात प्रकट हो चुका है, ऐसी ॥२१९॥
रजनी के होने पर [फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मीलियंमि अहपंडुरे पहाए] तथा विकसित | ब्राह्मणगृहे| कमल पत्रों एवं चित्र मृग के नयनों का उन्मीलन जिस में हो चुका है, ऐसे शुभ्र
वर्णनम् आभायुक्त प्रातः काल के होने पर, तथा रित्तासोगप्पगास किंसुय सुयमुह गुंजद्धराग
सरिसे कमलागरसंडबोहए] रक्त अशोक के प्रकाश तुल्य पलाश पुष्प के समान, शुक IT के मुख के समान और गुंजा के आधे भाग की ललाई के समान, कमल वनों को विक
सित करनेवाला प्रभात होने पर [उट्टियम्मि सूरे] आकाश में सूर्य का उदय होने पर [सहस्स रस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते] सहस्र किरणवाला दिनकर जब अपने तेजसे आकाश में चमकने लगा तब [सदोरयमुहपत्तिं पडिलेहित्ता] दोरा के साथ मुहपत्ति का प्रतिलेखन कर [सदोरयमुहपत्तिं मुहेबंधिअ] सदोरक मुखवत्रिका मुख पर बांध कर के
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