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सन्दार्थे
कल्पसूत्रे : उव्वहंति तत्थ तं सिबियं पुव्वदिसाए सुरिंदा, दाहिणाए दिलाए नागिंदा, इन्द्रादि॥१६२॥ - पच्छिमदिसाए असुरकुमारिंदा उत्तरदिसाए सुवण्णकुमारिंदा उव्वहति ॥३९॥ निष्क्रमण
महोत्सवः ___शब्दार्थ-[तए णं ते चउसट्ठी वि इंदा देवा य देवीओ य] तत्पश्चात् उन चोसठ
इन्द्रों ने, देवों ने और देवियों ने भगवान महावीर का दीक्षा महोत्सव मनाना आरंभ किया। [वरपडहभेरिझल्लरिसंखेहि सयसहस्सेहिं तूरेहिं तयवितयघणझुसिरेहिं चउ- .. विहेहिं आउज्जेहिं य वज्जमाणेहिं] बडे बडे ढोल बजने लगे, भेरियां बजने लगी, झालरों और शंखों की ध्वनि होने लगी। लाखों मृदंग आदि वाद्य बजने लगे। वीणा
आदि तत पटह आदि वितत कांसे के ताल आदि घण, और बांसुरी आदि शुषिर, । इस प्रकार चार प्रकार के वाद्य बज उठे [आणगसएहिं णहिज्जमाणेहिं] उत्तम उत्तम . सैकडों नर्तक नाटय करने लगे [सव्वदिव्वतुडियसनिनाएणं] समस्त दिव्य बाजों के ।
शब्दों की ध्वनि से [महया रवेणं] महान् शब्दों से [महईए विभूईए महया य हिय... ॥१६२१