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कल्पसूत्रे सभन्दाथे ॥९५॥
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के रंगों से विभूषित और ध्वजापताकाओं से मण्डित करवा दिया। जिन पर सिंह आदि
सिद्धार्थकृत के चिह्न बने रहते हैं और जो बड़े आकार की होती हैं वे ध्वजा या वैजयन्ती कहलाती | पुत्रजन्म.
महोत्सवः हैं। छोटी-छोटी ध्वजाएँ पताकाएँ कही जाती हैं। इन रंगों, ध्वजाओं और पताकाओं से नगर को सुशोभित करवाया। भूमितल गोबर से लींपवा दिया गया, और दीवारों पर चूना आदि से सफेदी करवा दी गई। गोशीर्ष-हरिचन्दन तथा सरस लालचन्दन के बहुत से दीवाल आदि स्थान-स्थान पर हाथे लगवा दिये। घरों के भीतर, चौकों में - चन्दन के लेप से युक्त कलश रखवा दिये। नगर के द्वार-द्वार पर चन्दन लिप्त घटों के रमणीय तोरण बनवा दिये। तथा उन द्वारों को, नीचे जमीन से लगी हुई और ऊपर | तक छुई हुई बहुत सी गोलाकार और लम्बाकार मालाओं के समूह से मण्डित करवा दिये, जहां-तहां बिखेरे हुए काले, नीले, पीले, लाल और शुक्ल-इन पांच वर्षों के सुन्दर और सुरभिसम्पन्न पुष्पों के समूह की शोभा से युक्त करवा दिये।