SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७७ मुनिहर्षिणी टीका अ. ७ भिक्षुपतिमाधारिकल्पवर्णनम् मनतिकम्य कल्पानुसारमित्यर्थः, यथामार्ग-ज्ञान-दर्शन-चारित्रलक्षणमोक्षमा नितिक्रमेण क्षयोपशमभावानतिक्रमेण वा, यथातत्वंतत्त्वानतिक्रमेण 'यथातथ्य - मितिच्छायापक्षे सत्यानुसारमिति, यथासाम्यम्=समभावमनतिक्रम्य सुष्ठुमकारेण कर्मनिर्जरणभावनयेत्यर्थः कायेन शरीरेण न पुनरभिलाषमात्रेण स्पृष्टा-समुचिनकाले सविधिग्रहणात् , पालयिता-वारंवारमुपयोगेन तत्परत्वात् , शोधयिता-पारणकदिने गुर्वादिदत्तावशिष्ट भोजनात अतीचारपक्षालनात् , तीरयित्वा-पूर्णेऽपि तद्वधौ स्वल्पकालावस्थानात् कीर्तयिता-पारणादिने 'इदं च दिनकृत्यं, तच्च मया कृत'-मित्येवं कथयिता, आराधयिता-अतिचारादिवर्जनेन समाराधयिता, आज्ञाया भवनिदेशस्यानुपालयिता-तत्परिपालनशीलो भवति १ ॥ मू० २२ ॥ ॥ इति प्रथमा भिक्षुपतिमा ॥ १ ॥ ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूपी मोक्षमार्ग के अनुसार अथवा क्षायोपशमिक भावों के अनुसार ' अहातच्च-जिनेन्द्रप्रतिपादित तत्व के अनुसार, 'अहासम्म'-समभाव से-जिस प्रकार कर्मों की निर्जरा हो उस प्रकार की भावनापूर्वक शरीर से ‘फासित्ता'-स्पर्श करने वाला, 'पालिता'बारम्बार उसका उपयोगपूर्वक पालन करने वाला, ' सोहिता'-पारणा के दिन गुरु आदि के द्वारा दिये गये अवशिष्ट अशनादि का भोजन करने से अथवा अतिचार पंक के धोने से शोधन करने वाला, 'तीरिता'प्रतिमा की अवधि पूर्ण होजाने पर भी पारणा के समय थोडी देर ठहरने वाला, 'किहिता'-पारणा के दिन "यह दिनकृत्य है, उसको मैंने पूरा किया" ऐसा कहने वाला, 'आराहिता 'अतिचार आदि 'अहाकप्पं' स्थवि२ Pule ४६५नी अनुसार, 'अहामग्गं' ज्ञान, शन, या२ि५३१ भाक्षभागनी अनुसार अथवा क्षायोपशभि भावानी अनुसार 'अहातच्चं मिनेन्द्रप्रतिपादित तत्वनी मनुसार, 'अहासम्म' सभमाथी २ २ ४भनी निकाय ते प्रा२नी मानापू' शरीरथी ‘फासिता' स्पश ४२वावा 'पालिता' पार पा२ तेना 64ये ४ पालन ४२वापा, 'सोहिता' पारन विस गुरु महिना द्वारा અપાયેલ અવશિષ્ટ અશન આદિનું ભજન કરવાથી અથવા અતિચાર પંકના છેવાથી शोधन ४२वापामा 'तीरिता' प्रतिमानी मपि पूर्ण ४ rdi by पारणाने समय थोडीवा२ २४वायाणा, किहिता'- पारन सि मा सिनु नृत्य ते मे ५३
SR No.009359
Book TitleDashashrut Skandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages497
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy