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सिकश्रुते सीए प्रथमायां पौरुष्यां 'सज्ज्ञार्य करेइ स्वाध्यायं करोति, 'जहा गोयमसामी यथा गौतमस्वामी-गौतमस्वामी यथा भिक्षाटनसमाचारी प्रयुक्ने, 'तहवं तयैवायमपि ताइक्सामाचारी समाचरन् 'धम्मघोसे थरे धर्मघोषान् स्थविरान् 'आपुच्छई आपृच्छति-भिक्षार्थमाज्ञां गृह्णाति 'जावं यावद-हस्तिनापुरे नगरे उचनीचमध्यमकुलेषु 'अडमाणे अटन-भिनार्थ भ्रमन् 'मुमुहम्स गाहावइस्स गिह सुमुखस्य गाथापतेगहम् 'अणुप्पविष्ठे अनुपविष्टातः । 'तए णं से सुमुहे गाबाई ततः खलु स मुमुखो गाथापतिः 'मुदत्तं अणगार मुदत्तमनगारस् 'एज्जमाण एजमानम्-स्वगृहमागच्छन्तं 'पासई पश्यति, 'पासित्ता दृष्ट्वा हद्वतु' अनेन 'हतचित्तमाणदिए पीडमणे परमसोमणस्सिए हरिसबसविप्पमाणहियए' इति संग्रहः । तत्र 'हल्द्वचित्तमादिए हृष्टतुष्टचित्तानन्दितः हृष्टतुष्टम् अतिवृष्टं, यद्वा-वृष्टं-हर्षितं तुष्टं प्राप्तसन्तोषं, तादृशं 'मासक्खमणस्स पारणगंसि मासक्षपणपारणा के दिन पहमाए पोरिसीए प्रथम पौरुषी में सझायं करेइ स्वाध्याय किये 'जहा गोयमसामो गौतमस्वामीकी तरह भिक्षा के समय में 'धम्मयोस थेरे आपुच्छ धर्मघोष आचार्यसे भिक्षा लाने के लिये आज्ञा मांगें और जाव अडमाणे सुमुहम्स गाहावइस्स गिहं अणुप्पविसई हस्तिनापुर नगर में उच्चनीच एवं मध्यमकुलों में भिक्षा के लिये घूमते हुए सुमुख गाथापति के घर पर पहुंचे । 'तए णं' और 'ले मुद्दे गाहाबई मुदत्तं अणगारं एजमाणं पास ज्यों ही उस सुमुख गाथापतिने सुदत्त अनगार को अपने घर पर आया हुआ देखा त्यों ही 'पासित्ता देखकर हनुगु आसणाओ अम्भुढेह वह बहुत ही हर्षित हुआ, सुदत्त अनगार को मणस्स पारणगंसि भार भए पनि ना हिले पडमाए पोरिसीए प्रथम पीलीभा सज्जायं करे' याय यो जहा गोयमसामी' गोतम स्वामीना प्रभारी मिशाना समये 'धम्मयोसे थरे आपुच्छई भधिष भान्याने निक्षा : भाटे ५७ ते 'जाव अडमाणे मुमुहम्स गाहावइस्स गिह अणुप्पविष्टे: હસ્તિનાપુર નગરમાં ઉચ્ચનીચ એવું અને કુલમાં રિક્ષા લેવા માટે ફરતા ફરતા अनुमायापतिने ३२ परिया. 'तए पं. ते पछी से मुमुहे गाहावई मुदत्तं अमगारं एज्जामागं पासई या ते हनुष गायति हत्त महारः पाताना ३२ पासे अवता स्यातेर मते 'पासिचा' ने ' टु० आसणाओ अभुट्टेइते घर हुई भन्यो, हत्त नुनिने ने मनभा र पंथी तृप्ति