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विपाकश्रुते नादि कृत्वा भगवदाज्ञां गृहीत्वा 'छट्ठक्खमणपारणगंसि' षष्ठक्षपणपारणके तहेव' तथैव-पूर्वोक्तवदेव 'जाव' यावत्-रोहितके नगरे भिक्षामटन् 'रायमग्गं' राजमार्गम् 'ओगाढे' अवगाढः समागतः । तत्र 'हत्थी' हस्तिनः 'आसे' अश्वान् 'पुरिसे' पुरुषांश्च 'पासइ' पश्यति । तेसिं पुरिसाणं' तेषां पुरुषाणां 'मज्झगयं' मध्यगतां 'पासइ' पश्यति । कां पश्यतीत्याह-- 'एगं इत्थियं' एकां स्त्रियम् । कीदृशीम् 'अवउडगवंधणं' अवकोटकबन्धनां व्याख्या प्रागुक्ता, 'उकित्तकपणणासं' उत्कृत्तकर्णनासां 'जाव' यावत्-'मूले' शुले-शूलायां 'भिज्जमाणं' भिद्यमानां 'पासइ' पश्यति, 'पासित्ता' दृष्ट्वा तस्य भगवतो गौतमस्य 'इमे' अयंवक्ष्यमाणः अज्झथिए०४' आध्यात्मिकः ४ आत्मनि मनोगतः-सङ्कल्पः 'तहेव' तथैव पूर्वोक्तप्रकार एव समुदपद्यत, 'णिग्गए' निर्गतः सामुदानिकों भिक्षां गृहीत्वा भगवान महावीर के बडे शिष्य गौतम स्वामी 'छटुक्खमणपारणगंसि' स्वाध्याय ध्यान एवं प्रतिलेखनादिक क्रिया समाप्त कर भगवान की आज्ञा लेकर छठ के पारणा के निमित्त 'तहेव जाव रायमग्गं ओगाढे' पूर्वोक्त विधि के अनुसार रोहितक नगर के ऊंच-नीचादि कुलों में सिक्षा के लिये फिरते हुए राजमार्ग में आये । 'हत्थी आसे पुरिसे पासइ' वहां उन्होंने अनेक हाथियों, घोडों और पुरुषों को देखा । साथ में 'तेसिं पुरिसाणं मज्झगयं पासइ एगं इत्थियं अवउडग-वंधणं उक्कित्तकण्णणासं जाव मूले भिज्जमाणं पासई' उन पुरुषों के बीच में उन्होंने एक ऐसी स्त्री देखी कि जिसके दोनो हाथ पीछे की ओर करके बंधे हुए थे । नाक और कान जिसके दोनों कटे हुए थे। शूली पर जो चढी हुई थी। 'पासित्ता इमे अज्झथिए४' ऐसी कष्ट दशा में पडे हुई स्त्री को देखकर भगवान गौतम के चित्त में ये वक्ष्यमाण संकल्प 'तहेव' पूर्व की 'छटक्खमणपारणगंसि, स्वाध्याय, ध्यान मने प्रतिसेयना या पूरी ४ीने भगवाननी माज्ञानेनपानिमित्ते, ' तहेव जाव · रायमगं. ओगाढे' આગળ કહેવામાં આવી છે તે વિધિ મુજબ હિતક નગરમાં ઊંચ-નીચાદિક કુલેમાં मिक्षा माटे ३२ता ३२ता शमा ५२ माव्या. हत्थी आसे पुरिसे पासइ' त्यां तेभो सने हाथामा, उमा भने पुरुषाने नया साथे 'तेसिं पुरिसाणं मज्ज्ञगयं पासइ एगं इत्थियं अवउडगवंधणं उक्त्तिककण्णणासं जाव सूले भिज्जामाणं' पासइ'. તે પુરુની વચમાં એક એવી સ્ત્રીને જોઈ કે જેના બને હાથ પાછળથી બાંધેલા હતા. ना भने आनना अपना तो मने रेशुक्षी ५२ अढली ता. 'पासित्ता इमे, अज्झथिए४' मेवी ४८ ६. ५६ी ते श्रीन लेने, भगवान गौतम, पित्तमा