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________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० ८, शौर्यदत्तवर्णनम् ६१९ साधुओं के समीप धर्म-श्रवण करते हुए बोधि का लाभ करेगा । फिर यह इस पर्याय से छूट कर सौधर्म स्वर्ग में देव-और वहां से महाविदेह में जन्म लेकर सिद्धिगति को प्राप्त होगा। "णिवखेवो' इस प्रकार श्री श्रमण भगवान महावीर स्वामीने इस अध्ययन का यह भाव फरमाया है । 'त्तिबेमि' जैसा मैंने भगवान से सुना है वैसा ही तुम से कहा है ॥ सू० ८ ॥ ॥ इति श्री विपाकश्रुतके दुःखविपाकनामक प्रथमश्रुतस्कन्ध की 'विपाकचन्द्रिका' टीका. के हिन्दी अनुवाद में 'शौर्यदत्त' नामक अष्टस अध्ययन सम्पूर्ण ॥ १-८॥ પુત્રરૂપે ઉત્પન્ન થઈ તે સ્થવિર–મુનિઓની પાસેથી ધર્મ સાંભળીને બેધિ-બીજનો લાભ પ્રાપ્ત કરશે, પછી તે જીવ એ પર્યાયથી છુટીને સૌધર્મ સ્વર્ગમાં દેવ–અને ત્યાંથી महाविमा भने सिद्धि गतिने पामशे. 'णिक्खेवो' मा प्रभारी श्रभर भगवान महावीर स्वामी मा अध्ययननी भाव हो छ. 'त्तिवेमि' मगवान पासेथी रे में सामन्यु छ तेवुद्ध में तमने घुछ. (सू०८) धति विपाश्रुतना 'दुःखविपाक' नामना प्रथम श्रुतधनी 'विपाकचन्द्रिका' आना शुशती मनुवामा 'शौर्यदत्त' नाम भाभु અધ્યયન સપૂર્ણ છે ૧-૮ છે
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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