SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 636
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६०६ ... विपाकश्रुते 'वक्फवंधेहि य' वल्कलबन्धैः, 'सुत्तवंधेहि य' सूत्रबन्धैः 'बालबंधेहि य बालबन्धैः केशनिर्मितवन्धनैश्च शौर्यदत्तस्य भृत्याः 'वहवे' वहून् 'सहमच्छे य' श्लक्ष्णमत्स्यान् 'जाव' यावत् 'पडागाइपडागे य' पताकातिपताकान्-एतनामकान् मत्स्यान् श्लक्ष्णमत्स्यादारभ्य पताकातिपताकमत्स्यपर्यन्तमनेकविधा मत्स्या भवन्ति, तथा हि प्रज्ञापनासूत्रस्य प्रथमपदे 'से किं तं मच्छा ? मच्छा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-सहमच्छा खवल्लमच्छा जुंगमच्छा विज्झडियमच्छा हलिमच्छा मगरमच्छा रोहियमच्छा हलीसागरा गागरावडा वडगरा गब्भया उसगारा तिमितिमिगिला णका तंडुलमच्छा कणिकामच्छा सालिसत्थिया मच्छा लंभणमच्छा पडागा पडागाइपडागा जोयावन्ने तहप्पगारा; सेत्ते मच्छा' तान् सर्वानित्यर्थः, 'गिण्हंति' गृह्णन्ति । 'गिण्हित्ता' गृहीत्वा तैमत्स्यैः 'एगट्टियाओ' एकाथिकाः नौकाः ‘भैरेति' भरन्ति पूरयन्ति । 'भरित्ता' भृत्वां 'कूलं' यमुनामुत्तवंधेहि य वालबंधेहि यं बहवे सोहमच्छे य जाब पडागाइपडागे य गिव्हंति' वहाँ पर वे मछलियों को पकड़ने के लिये वस्त्रों से उसका पानी भर कर छानते उसमें वे इतस्ततः चक्कर काटते, थूहर का दूध भरकर पानी में डालते जिससे पानी खराब हो जाय, वृक्षों की शाखा से कभी२ पानी का विलोडन करते, मोरियों द्वारा कभीर उसका पानी बाहिर निकाल देते, कभी२ नौका पर चढे२ ही पानी में इधर उधर डोला करते । तथा प्रपम्बुलों द्वारा, जंभाओं द्वारा, तिसराओं द्वारा, मिसराओं द्वारा धिसराओं द्वारा, विसराओं द्वारा, हिल्लरियों द्वारा, झिल्लिरियों द्वारा, (ये सब शब्द जालविशेष के वाची है) जालों द्वारा, गलकंटकों द्वारा, कूटपाशों द्वारा, वल्कलबन्धों द्वारा, सूत्रबन्धों द्वारा, बालबन्धों द्वारा,अनेक श्लक्ष्ण मछलियों को पताकातिपताका मछलियोंको पकडते थे। य जालेहि य गलेहि य कूडपासेहि य वक्कबंधेहि य सुत्तवंधेहि य वालचंधेहि य चहवे सहमच्छे य जाब पडागाइपडागे य गिण्हंति' त्यो मातमा भाछલીઓને પકડવા માટે વસ્ત્રોમાં તેનું પાણી ભરીને ગાળતા તેમાં આમ તેમ ચક્કર મારતા. થરનું દૂધ ભરીને પાણીમાં નાંખતા જેનાથી પાણી ખરાબ થઈ જાય, વૃક્ષોની ડાળીઓ કાપીને પાણીમાં નાંખતા, મેરી વડે કરી કયારેક તેનું પાણી બહાર કાઢી નાખતા. કયારેક વહાણ ઉપર ચઢીને પાણીમાં આજુ-બાજુ ડાન્યા કરતા હતા તથા અનેક પ્રકારની જાળો ना नामा-रेवा, अ५ मुसो, लामा, तिसरायो, भिसरासी, सिरामे, विसरायो, હિલિવરીઓ, ઝિલરિઓ, આ દરેક જાતની જાલ વડે તથા જાળ દ્વારા, ગલકંટકે ફૂટપાશ, વકલ બ, સૂત્ર, બાલબદ્વારા અનેક ક્ષણ માછલીઓને, પતાકાतिपतानामनी भावी माने तो तो, 'गिणिहत्ता डीशन' एगठियाओ
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy