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विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० ६, नन्दिषेणवर्णनम् 'बहूओ' बद्दयः 'अयकुंडीओ' अयाकुण्डया लोहमयगम्भीरभाजनविशेषाः आसन् , तासु 'अप्पेगइयाओ' अप्येककाः कतिपयाः 'तंबभरियाओ' ताम्रभृताः,-द्रवीभूतताम्रपूर्णाः 'अप्पेगइयाओ' अप्येककाः 'तउयभरियाओ' त्रपु भृताः, 'अप्पेगइयाओ' अप्येककाः 'सीसगभरियाओ' सीसकभृताः 'अप्पेगइयाओ' अप्येककाः 'कलकलभरियाओ' कलकलभृताः कलकलशब्दयुक्तचूर्ण मिश्रतैलपूर्णाः अप्पेगइयाओ' अप्येककाः 'खारतेल्लभरियाओ' क्षारतैलभृताः 'अप्पेगइयाओ' अप्येककाः 'अगणीकायंसि' अग्निकाये-अग्न्युपरि ‘अद्दहियाओ' आदहिताः आदहनम् आदहः(आङ्पूर्वकाद् 'दह' धातार्यन,) स संजात एषां ते आदहिताः, (आर्षत्वानोपधाद्धिः) उत्कालिताः (उत्कथिताः) 'चिट्ठति' तिष्ठन्ति आसन् । 'तस्स णं दुजोहणस्स चारगपालगस्स' तस्य खल दुर्योधनस्य चारकपालकस्य 'वहवे'. वयः 'उट्टियाओ' उष्ट्रिकाः मृण्मयबृहत्पात्रविशेषाः 'नाद' इति प्रसिद्धाः अनेक उसके पास लोहे की बडी२ गहरी कुंडियां थी। उनमें. 'अप्पेगइयाओ' कितनीक तो 'तंवभरियाओ' पिघले हुए गर्म गौ तांबे से भरी हुई रहती थीं 'अप्पेगइयाओ कितनीक 'तउयभरियाओ' पिघले हुइ गर्म गर्म जसद से भरी हुई रहती थीं 'अप्पेगइयाओ सीसगभरियाओ कितनीक पिघले हुए गर्म२ सीसे से भरी हुई रहती थीं । अप्पेगइयाओ कलकलभरियाओं कितनीक कलकल शब्द करते हुए-उकलते हुए चुनेले मिश्रित तेल से भरी हुई रहतीथीं । 'अप्पेगइयाओ खारतेल्लभरियाओ' कितनीक खारे गरमागरम तैल से भरी हुई रहती थीं। और 'अप्पेगइयाओ अगणीकायंसि अदहियाओ चिट्ठति' कितनीक अग्नि के ऊपर गर्मपानी से उबलती रहती थीं । 'तस्स णं दुजोहणस्स चोरगपालगस्स वह उहियाओ आसमुत्तभरियाओ' उस दुर्योधन चारकपालक के यहां बहुत सी ऐसी भी मने गरी यो ती तमा 'अप्पेगइयाओ' zzels तो ' तंवभरियाओ' पागणावेस गरम पाथी मसी ती. 'अप्पेगइयाओ' els 'तउयभरियाओ' गरम पाणावेस सतना २सनी भरेती ती. 'अप्पेगइयाओ सीसगभरियाओ' टनी १२५ सीसानी म२सी रडती ती. 'अप्पेगइयाओ कलकलभारियाओ' टक्षी ४-४८ श६ ४२ता xणेसा युनाना पाथी भरेशी ती. 'अप्पेगइयाओ खारतेल्लभरियाओ'टी भास गरम तसनी सी , भने 'अप्पेगइयाओ अगणीकायंसि अद्दहियाओ चिट्ठति ' ४ी४ मनि ५२ गरम पानी Endl हाय तवा उती ती. 'तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालगस्स बहवे उहियाओं आसमुत्तभरियाओ' ते दुर्योधन न्या२४-पासने त्यो भाटीनी भेट मोटी ही