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________________ ४६४ विपाकश्रुते ॥ मूलम् ॥ __ तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए एयकम्मे ४ सुबहु पावं समजिणिचा तीसं वाससयाइं परमाउं पालित्ता कालमासे कालं किच्चा पंचमाए पुढवीए उक्कोसेणं सत्तरससागरोवमदिइएसु णेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णे। से णं ताओ अणंतरं उबहित्ता इहेव कोसंबीए णयरीए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स वसुदत्ताए भारियाए पुत्तत्ताए उववणे । तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णिवत्ते एगारसे दिवसे, संपत्ते वारसाहे, इमं एयारूवं णामधिज करेंति-जम्हा णं अन्हं इमे दारए सोमदत्तस्स पुत्ते वसुदत्ताए अत्तए, तम्हा णं होउ णं अम्हं दारऐ वहस्सइ. दत्ते णामे णं । तए णं से बहस्सइदत्ते दारए पंचधाईपरिग्गहिए जाव परिवड्ढइ । तए णं से वहस्सइदत्ते दारए, उम्मुकवालभावे जोवणगमणुपत्ते विण्णायपरिणयमेते होत्था। सेणं उदयणस्स कुमारस्स पियवालवयंसए यावि होत्था। सहजायए सहवढियए सहपंसुकीलियए ॥ सू० ४ ॥ टीका 'तए णं से' इत्यादि । 'तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए' ततः खलु . कलेजों को होम में झोंका करता । यह हैं इस पुरोहित की निर्दयता का नमूना । इस प्रकार यह कितनेक शत्रुसैन्य को यज्ञ के प्रभाव से नष्ट कर देता, तथा कितनेक को पास में ही नहीं आने देता-दूर से ही उन्हें खदेड दिया करता था । ॥ सू० ३॥ 'तए णं से' इत्यादि । કાળજાઓને હેમ કરવાના મુડમાં ધકેલી દેતો. આ છે પુહિતની નિર્દયતાને નમુને. આ પ્રમાણે તે કેટલાક શત્રુઓના સૈન્યને યજ્ઞના પ્રભાવથી નાશ કરી દે; તથા કેટલાકને તે નજીકમાં આવવા દેતો નહિ. અને દૂરથી ભગાડી દેતે હતો. (સૂ) ૩) 'तए णं से प्रत्याहि.
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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