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विपाकश्रुते अष्टशतं वैश्यदारकाणाम् , 'अट्ठसयं सुद्ददारगाणं' अष्टशतं शूद्रदारकाणां 'पुरिसेहि गिण्हावेई' पुरुषैः-राजपुरुषैहियति, 'गिहावित्ता तेर्सि' ग्राहयित्वा तेषां 'जीवंतगाणं चेव' जीवतामेव 'हियउडियाओ' हृदयपुटिकाः 'गिण्हावेई' ग्राहयति, गिहावित्ता जियसत्तुस्स रण्णो संतिहोमं करेइ' ग्राहयित्वा जितशत्रो राज्ञः शान्तिहोमं करोति । 'तए णं से' ततः खलु स 'परवले' परवल शत्रुसैन्यं 'खिप्पामेव' क्षिप्रमेव 'विद्धं सेइ वा' विध्वंसयति-नाशयति 'पडिसेहेइ वा' प्रतिषेधयति-निवर्तयति ॥ मू० ३॥ बालकों को, १०८ क्षत्रियों के बालकों को, १०८ वैश्यों के बालकों को,
और शूद्रों के १०८ बालकों को राजपुरुषों द्वारा पकडवा लेता और 'गिहावित्ता तेसिं जीवंतगाणं चेव हियउडियाओ गिण्हावेइ, गिहावित्ता जियसत्तुस्स रणो संतिहोमं करेइ पकडवाकर उनका हृद्यपुट निकलवाता, निकलवाकर उससे जितशत्रु राजा की शांति की कामना से शांतिहोम करता 'तए णं से परवले खिप्पामेव विद्धंसेइ वा पडिसेहेइ वा इस प्रकार वह पुरोहित परसैन्य का शीघ्र ही विनाश करदेता और कितनेक सैनिकों को खदेड देता था।
भावार्थ- हे गौतम ! इस जंबूद्वीपस्थित भरतखण्ड में एक विशाल नगर था । जो सर्वप्रकार से समृद्ध एवं धनधान्यादि से पूर्ण हरा-भरा था। इस में जनता के मुख पर सदा आनंद छाया हुआ रहता था। कोई किसी भी प्रकार से दुःखी नहीं था । सर्वतोभद्र इस नगर का नाम था। यहां का राजा जितशत्रु था । इस का एक पुरोहित था । जो वेदविद्या में पूर्णरूप से निष्णात था। महेश्वरदत्त ક્ષત્રિયનાં બાળકોને, ૧૦૮ વૈશ્યનાં બાળકોને, ૧૦૮ શૂદ્રોના બાળકે ને રાજપુરુષ દ્વારા ५४.पत भने 'गिहावित्ता तेर्सि जीवनगाणं चेव हियउडियाओ गिण्हावेइ, गिहावित्ता जियसत्तुस्स रण्णो संतिहोमं करेइ' ५४ावान तेनायपिउने पावेतो. ४ढापान तेना 43 हितशत्रु २०नी शांतिना मनाथी म र 'तए णं से परवले खिप्पामेव विद्धंसेइ, वा पडिसेहेइ वा ते प्रमाणे में पुडित पशेन्यने। તરત જ નાશ કરી દેતે અને કેટલાક સૈન્યને ભગાડી આપતા હતા.
ભાવાર્થ – હે ગૌતમ! આ જંબૂઢીપસ્થિત ભરતખંડમાં એક વિશાલ નગર હતું, તે સર્વ પ્રકારથી સમૃદ્ધ અને ધન-ધાન્યાદિકથી પરિપૂર્ણ–ભરેલું હતું. તે નગરની પ્રજાના સુખપર હમેશાં આનંદ વરતતે હતે, કોઈપણ પ્રકારનું ત્યાં દુઃખ ન હતું, તે નગરનું નામ સર્વતોભદ્ર હતું, તેના રાજ જિતશત્રુ હતા, તેને એક