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________________ विपाकचन्द्रिका टीका श्रु. १, अ. ४, शकटवर्णनम् ४१३. कल्पनीकल्पितानिकर्तरीकर्तितानि लघुलघूनि खण्डानीत्यर्थः, 'करेंति' कुर्वन्ति । 'करित्ता छण्णियस्स छागलियस्स' कृत्वा छनिकस्य छागलिकस्य 'उवणेति' उपनयन्ति-समीप आनयन्ति । 'अण्णेय से बहवे पुरिसा ताई बहुयाई अयमंसाइ य जाव महिस मंसाई य' अन्ये च तस्य बहवः पुरुषास्तानि बहुकानि अजमांसानि-छागमांसानि यावद् महिषमांसानि च 'तवएसु य' तपकेषु चतपका लघुतलनपात्राणि तेषु, 'तवा' इति ख्यातेषु 'कवल्लीसु य' कवल्लीषु च: 'कडाह' इति प्रसिद्धेषु, ' कंसु य' कन्दूषु-लघुकटाहेषु च भज्जणएमु य . भर्जनकेषु च, भर्जनकानिभर्जनपात्राणि तेषु च, 'इंगालेसु य' अङ्गारेषुनिधूमेषु काष्ठाद्यनिषु च, . 'तलेंति य' तलयन्ति च, तलधातश्चुरादिपठितः, तलनपात्रे घृनादीनि निक्षिप्य तत्र पचन्तीत्यर्थः, 'भन्जेति य' भृजन्ति च, 'सोलंति य' सोल्लयन्ति-शूले धृत्वा पचन्ति । 'तलित्ता य' तलयित्वा च, अत्र भृष्ट्वा सोलयित्वा च, इत्यपि बोध्यम् । 'रायमग्गंसि' राजमार्गे 'वित्तिं कप्पेमाणा' जानवरों को जीवन से पृथक करते थे-मारते थे। 'ववरोवित्ता' मारकर 'मंसाई कप्पणीकप्पियाई करेंति' उनके मांस के फिर वे कैची से कतर२ कर टुकडे करते थे । 'करित्ता छणियस्स छागलियस्स उवणेति' टुकडे कर पश्चात् उस छनिक कसाई के पास उन्हें ले जाते । 'अण्णे य से बहवे पुरिसा' कोई पुरुष ऐसे भी कर्मचारी थे जो 'ताई बहुयाई अयमंसाई य जाब महिसमसाई तवएसु य कवल्लीसु य कंदूमु य भज्जणएसु य इंगालेसु य तलेंति३' इन लाये हुए समस्त अजादिक के मांसखंडों को लोहे के तवों पर, बडे २ कडाहों में, छोटी२ कडयों में, झुंजने के पात्रों में एवं अंगारों के ऊपर यथाक्रम से घी में तलते थे, झुंजते थे एवं सेकते थे 'तलिना य३' ललकर झुंजकर और सेककर फिर वे, 'रायमगंसि' राजमार्ग में- मनुष्यों के आने जाने के मार्ग साधने. पाणी सुधीना नपरीने भारत। ता. ववरोवित्ता' मारीने 'मंसाई कप्पणीकप्पिया करेंति' तेना भांसना त२ 43 ४तरीन टु४31 ४२ता हुता. 'करित्ता छणियस्स छागलियस्ल उवणेति' । यो पछी तेने छन्नि सा पासे ते रता तi. ' अण्णे य से बहवे पुरिसा' मा वा न४ि२ ५५ हता 'ताई बहुयाइं अयमंसाइं य जाव महिसमंसाई तवएसु य कवल्लीसु य फंदसु य भज्जणएमु य इंगालेसु य तलेति३' ते लावता समस्त ५२२ माहिना માંસના ટુકડાઓને લેઢાના તવા-તાવડા પર, મોટી કડાઈઓમાં, નાની કડાઈઓમાં, એકવાના વાસણમાં અને અંગારાપર યથાક્રમ ઘીમાં તળતા હતા, ભુંજતા હતા અને सेहता त! 'तलित्ता य३' तणीने भूछने सेटीन पछी 'रायमग्गंसि' भाभा
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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