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________________ वि. टीका, श्रु० १, अ० २, उज्झितकस्यागामिभववर्णनम् २८३ 'जाएजाए' जातान् जातान् 'वाणरसीए' वानरपोतान् वानरशिशून् , पुंस्त्वविशिष्टान् वानरशिशूनिति भावः, 'वहे हिइ' हनिष्यति-मारयिष्यतीत्यर्थः। 'एयकम्मे ४' एतत्काएतद्-जातभात्रवानरामकवधकरणरूपं कर्म यल्य स तथा, अत्र “एयप्पहाणे, एयविज्जे, एयसमायारे' इति त्रयाणां पदानां संग्रहः, एषां व्याख्या अस्मिन्नेवाध्ययने (१३) त्रयोदशसूत्रे कृताऽस्माभिः । 'कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे भारहे वासे इंदपुरे णयरे गणियाकुले पुत्तत्ताए' कालमासे कालं कृत्वा इहैव जम्बूद्वीपे भारते वर्षे इन्द्रपुरे नगरे गणिकाकुले पुत्रतया 'पञ्चायाहिइ' प्रत्यायास्यति-उत्पत्स्यते । 'तए णं तं दारगं' ततः खलु तं दारकम् 'अम्मापियरो' मातापितरौ 'जायमेत्तगं' जातमात्रकं 'पद्धेहिति' वर्धयिष्यतः वर्धितकं करिष्यतः-नपुंसकचेष्टारूपकुकर्मकरणार्थ लिङ्ग में वासित अन्तःकरण वाला बना हुआ यह दानरियों के पुरुषजाति के बच्चों को मारता रहेगा। उस पर्याय में इसका "एयकस्मे' यानरियों के जातमात्र बच्चों का वध करना यही एक मात्र काम होगा, 'एयप्पहाणे' इसी क्रिया में यह तत्पर रहेगा, 'एयविज्जे' यही एक इसके जीवन की विद्या होगी, 'एयसमायारे' यह बानरियों के बड़ों को मारने की धुन में ही लगा रहेगा। फिर 'कालमासे कालं किच्चा इन जंबूढीव दीवे आरहे वासे इंदपुरे णयरे गणियाकुलंसि एतत्ताए पञ्चायाहिइ' जब वहां की पर्याय की इसकी आयु पूर्ण हो जायगी, तब वहां से मरण के अवसर पर मर कर यह इसी जंबूद्वीप के सरतक्षेत्र में रहे हुए इंद्रपुर नगर में वेश्या के कुल में पुत्ररूप से उत्पन्न होगा। 'तए णं तं दारगं अम्मापियरो जायमेत्तगं बद्धेहिति उत्पन्न होते ही इसके माता-पिता इसे वर्धित कर डालेंगे, नपुंसक बना देंगे। સંબંધી અધિક આસકિતમાં રાત્રી–દિવસ બંધાએલે તથા અધ્યપપન્ન તેના સેવનમાં ક્ષણે-ક્ષણે ભાવિત અન્ત:કરણવાળો થઈને તે વાંદરીનાં પુરુષજાતિના पन्यांमाने भारत २हे. ते पर्यायां ते 'एयकम्मे' हशमानो तरतना मेसा पानी ना ४२वे। मे४ मे मात्र महेश. 'एयप्पहाणे' मे श्याम ते त५२ २. 'एयविज्जे' से मे तेना ननी विधा शे. 'एयसमायारे ते पहरीयानां यांगाने भारवानी धूनमा साम्यो २री. पछी 'कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इंदपुरे णयरे गणियाकुलंसि पुत्तत्ताए पञ्चायाडिइ, पान२पर्यायतुं मायुष्य ५३ ४शने भ२६१ समये મરણ પામીને તે આ જ બૂદ્વીપ ભરતક્ષેત્રમાં રહેલાં ઇંદ્રપુર નગરમાં વેશ્યાના કુલમાં पुत्र३५थी पन्न 42. 'तए णं तं दारगं अम्मापियरो जायमेत्तगं वद्धेहिंति'.
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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