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________________ वि. टीका; श्रु० १, अ० २, उज्झितकपूर्वभत्र गोत्रास कूटग्राह वर्णनम् २५३ दिवसे णिवत्ते, संपत्ते बारसाहे इयमेयारूवं गोणं गुणणिप्फण्णं णामधेज्जं करेंति, जम्हा णं अम्हे इमे दारए जायमेत्तए चेव एगते उकुरुडियाए उज्झिए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए उज्झिए णामेणं ॥ सू० १४ ॥ . . . . . . टीका ... 'तए णं से' इत्यादि । 'तए णं से गोत्तासे कूडग्गाहे' ततः खलु स गोत्रासः कूटग्राहो 'दोच्चाओ पुढवीओ द्वितीयायाः पृथिव्याः 'अणंतरं' अनन्तरम् अन्तररहितम् 'उहित्ता' उद्वत्य-निःमृत्य, 'इहैव वाणियग्गामे णयरे विजयमित्तस्स सत्यवाहस्स सुभद्दाए भारियाए' इहैव वाणियग्रामे नगरे विजयमित्रस्य सार्थवाहस्य सुभद्राया भार्यायाः 'कुञ्छिसि कुक्षौ-उदरे 'पुत्तत्ताए उवषण्णे' पुत्रतयोत्पन्नः । 'तए णं सा सुभदा सत्थवाही' ततः खलु सा सुभद्रा सार्थवाही 'अण्णया कयाई' अन्यदा कदाचित् कस्मिंश्चिदन्यस्मिन् समये 'तए णं से' इत्यादि। 'तए णं' इसके अनन्तर ‘से गेत्तासे कूडग्गाहे' वह गोत्रास कूटग्राह का जीव 'दोच्चाओ पुढवीओ' उस द्वितीय पृथिवी से 'अणंतरं उव्यट्टिना' सीधा निकल कर 'इहेव वाणियग्गामे णयरे' इसी वाणिजग्राम नगर में 'विनयमित्तस्स सत्यवाहस्स' विजयमित्र सार्थवाह की 'सुभदाए भारियाए कुच्छिसि' सुभद्रा नामक भार्या की कुक्षि में 'पुत्तत्ताए उववण्णे' पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ। 'तए णं सा सुमदा सत्यवाही अण्णया कयाइं णवण्डं मासांणं बहुपडिपुण्णाणं दारयं पयाया' सुभद्राने किसी 'तए णं से' त्यादि. 'तए णं' से गोत्तासे कूडग्गाहे 'त गानास यूटयाउन ५ 'दोच्चाओ' पुढवीओ' ते भाल पृथ्वीथी 'अणंतरं उच्चट्टित्ता' leीन साधे 'इहेव वाणियग्गामे णयरे' मा पापियाम नाम "विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स' वियभित्र सार्थवानी सुभद्दाए सत्यवाहीए कुच्छिसि सुभद्रा नामनी मायनी मां 'पुत्तत्ताए उववण्णे' पुत्र३पे पन्न थयो. . 'तए. णं सा सुभदा सत्यवाही अण्णया कयाई णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं. दारयं पयाया' सुभाने आई त्या
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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